हठयोग

हठयोग की परिभाषा –

ह और ठ से मिलकर हठ शब्द की उत्पत्ति हुई है यह सूर्य और चंद्र नाडियों के नाम से भी जाने जाते हैं ह का अर्थ है सूर्य नाड़ी व ठ अर्थ चंद्र नाड़ी जिन्हें टावर पिंगला भी कहते हैं।

हकार सूर्य स्वर और ठकान से चंद्र स्वर चलते हैं सूर्य और चंद्र स्वर को प्राणायाम का अभ्यास करके प्राण गति को सुषुम्ना में ले जाना ही हठयोग है।

हठयोग
हठ – ह + ठ
हकार + ठकार
सूर्य नाड़ी चंद्र नाड़ी
दायां बायां

ह- सूर्य, पिंगला ,ग्रीष्म, पित्त, शिव, दिन, रजस (रज)
ठ- चंद्र,इड़ा, शीत, कफ, शक्ति, रात, तमस (तम)

हठयोग के अंग-

हट प्रदीपिका के अनुसार हठयोग के 4 अंक बताए गए हैं जो इस प्रकार है-

  1. आसन
  2. प्राणायाम
  3. मुद्रा एवं बंध
  4. नादानुसंधान
  5. यौगिक चिकित्सा (कैवल्यधाम के अनुसार)

हठयोग में आसन-

आसान शब्द संस्कृत के अस धातु से बना है जिस के दो अर्थ है

  1. जिस पर बैठा जाता है
  2. शारीरिक अवस्था

पतंजलि के अनुसार हठयोग की परिभाषा –

स्थिरं सुखं आसनं
अर्थात जिस पर स्थिरता पूर्वक सुख के साथ लंबे समय तक बैठा जाए वह आसान है।

हठयोग प्रदीपिका के अनुसार आसन

हट प्रदीपिका में आसन को 15 भागों में विभक्त किया गया है जो इस प्रकार है

  1. स्वास्तिक आसन
  2. गोमुखासन
  3. वीरासन
  4. कुर्मासन
  5. कुक्कुटासन
  6. उत्तान कुर्मासन
  7. धनुरासन
  8. मत्स्यासन
  9. पश्चिमोत्तानासन
  10. मयूरासन
  11. शवासन
  12. सिद्धासन
  13. भद्रासन
  14. हस्त पद्मासन
  15. सिंहासन

हठयोग का उद्देश्य-

कैवल्यानंद जी के अनुसार योगिक क्रियाओं का उद्देश्य मात्र शारीरिक लाभ प्राप्त करना ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करना है। शारीरिक लाभ का छोटा उद्देश्य है, आध्यात्मिक लाभ का भी होना आवश्यक है, क्योंकि आसन एक सूक्ष्म विज्ञान है।

हठयोग के अनुसार आसन के भेद-

यह आसनों का ताल है दीर्घकाल तक आसनों का अभ्यास करने से शारीरिक स्तर पर होने वाली बीमारियां और उनसे भी अधिक मानसिक स्तर पर होने वाले द्वद नष्ट हो जाते हैं ।

यह आसनों का ताल है दीर्घकाल तक आसनों का अभ्यास करने से शारीरिक स्तर पर होने वाली बीमारियां और उनसे भी अधिक मानसिक स्तर पर होने वाले द्वद नष्ट हो जाते हैं फल स्वरुप शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर एक संतुलन अवस्था की प्राप्ति होती है।

आसन को तीन भागों में बांटा गया है-

  1. शरीर संवर्धनात्मक
  2. ध्यानात्मक
  3. शांति दायक

1 .शरीर संवर्धनात्मक

आसन-यह वह आसन है जिनमें शालिक स्वस्थ बनाया रखा जा सकता है पोषण हेतु आवश्यक द्रव्य रक्त द्वारा शरीर के सभी अंगों में पहुंचते हैं ।पोषण प्रक्रिया में पाचन संस्थान की और प्रक्षुण शक्तियां अत्यधिक महत्व रखती है इन्हें शरीर संवर्धन आत्मक आसन कहते हैं । उदाहरण के लिए जैसे मेरुदंड आसन, पश्चिमोत्तानासन, गोमुखासन, उत्तान कुरमासन, कुक्कुटासन ,धनुरासन ,मयूरासन, भद्रासन ,सिंहासन, वीरासन आदि।

2 . ध्यानात्मक

यह वह आसन है जिसमें बैठकर ध्यान लगाता है और अपने मन को एकाग्र करने का प्रयत्न करता है । उदाहरण के लिए-पद्मासन, सिद्धासन, स्वास्तिकआसन ,सुखासन।

3. शांतिदायक

इसके अंतर्गत वे आसन आते हैं जिनसे शरीर की मांसपेशियों में खिंचाव को दूर करने के लिए एवं शरीर को सामान्य अवस्था में लाने के लिए किया जाता है इनसे मानसिक तनाव कम होता है एकाग्रता की क्षमता बढ़ती है, उदाहरण के लिए- शवासन, मकरासन।

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