महर्षि वशिष्ठ का जीवन परिचय | Biography of Maharishi Vashisht Hindi


महर्षि वशिष्ठ एक बहुत ही महान योगी हैं। इनके स्वभाव व दयालुता इनके उपदेशों के कारण यह सदैव चर्चित रहे हैं। महर्षि वशिष्ठ बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे।

उनके उपदेशों से प्राचीन काल के ग्रंथ धार्मिक ग्रंथ सभी भरे पड़े हैं। ब्रह्मांड की उत्पत्ति के प्रथम समय में भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र के रूप में यह जाने जाते थे कहीं-कहीं है मित्र वरुण के पुत्र तथा अग्नि के पुत्र आग्नेय कहे गए हैं।

यह सबसे महान क्षत्रियों में से एक है और इनकी पत्नी अरुंधति पवित्रता में सर्वश्रेष्ठ है सप्त ऋषि मंडल में महर्षि वशिष्ठ जी के साथ इनकी मां अरुंधति भी हमेशा विद्यमान रहती है।

सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी को जब यह ज्ञान प्राप्त होता है कि आगे चलकर सूर्यवंश में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम अवतरित होंगे।

इन्होंने सूर्यवंश का ब्राह्मण बनना स्वीकार कर लिया। इनका तपोबल इतना था कि जब कभी अनावृष्टि आती तो यह अपने योग बल से उसको दूर कर देते थे। राजा भागीरथ आपकी ही कृपा से गंगा को लाने में समर्थ हो सके थे।

महाराज दिलीप की कोई संतान नहीं थी। महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए गौ सेवा का व्रत बताया था। इन्होंने ही अयोध्या के राजा दशरथ की रानियों को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाने को कहा। इन्हीं के सहयोग से और आशीर्वाद से भगवान श्री राम और उनके भाइयों का जन्म हुआ।

महर्षि वशिष्ठ जी का योग बल अत्यंत अद्भुत था। दूर-दूर तक लोग इनके इसी योग बल के कारण इन्हें बहुत अधिक मानते थे। एक दिन महातपस्वी एवं महान शक्तिशाली महाराजा विश्वरत सेना सहित उनके आश्रम गए।

महर्षि ने सेना सहित इनका आदर किया। वहां नंदनी नामक एक कामधेनु गाय का अद्भुत प्रभाव देखा और उसका अपहरण कर ले जाने की चेष्टा करने लगे।

वशिष्ट जी ने इनकी सेना को ध्वस्त कर दिया। वह लज्जित होकर हिमालय की और जाकर घोर तपस्या में लग गए।

भगवान शिव शंकर एवं सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी के वरदान से विश्वामित्र ने दिव्या धनुर्विद्या के ज्ञान के साथ ही अलौकिक बल पराक्रम पर्वता अस्त्र अनेक अस्त्र-शस्त्र को प्राप्त किया ।

ये सभी शक्तियां प्राप्त कर विश्वामित्र जी पुनः वशिष्ठ जी के आश्रम चले गए और उन्हें तंग करने लगे। किंतु वशिष्ठ जी उनसे क्षमा मांगे और अपने बल से अपने ब्रह्मदंडी को पृथ्वी पर गाड़ दिया।

जिस पर विश्वामित्र जी के सभी अस्त्र-शस्त्र समा गए। तब विश्वामित्र जी ने क्षत्रिय बल को धिक्कारते हुए कहा क्षत्रिय को धिक्कार है।

वास्तविकता में तो ब्रह्म तेज रूप ही बल ही वास्तविक बल है। क्योंकि एक ब्रह्मदंडी के सामने सभी अस्त्र-शस्त्र पराजित हो गए हैं। इस बात से शर्मसार होकर विश्वामित्र जी ब्राह्मण तत्व प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगे।

लेकिन अहंकार के भाव का त्याग नहीं कर पाए। इसी के कारण विश्वामित्र जी ने वशिष्ठ जी के सौ पुत्रों को मार डाला। किंतु फिर भी वशिष्ठ जी ने माफी का मार्ग ही उचित समझा।

विश्वामित्र जी ने जब वशिष्ठ जी का बुरा करना चाहा दो उस समय वशिष्ठ जी के द्वारा अपनी पत्नी से सब की प्रशंसा करते हुए सुनकर अत्यंत पश्चाताप करने लगे और शस्त्र फेंककर वशिष्ठ जी के चरणों में गिर पड़े।

वशिष्ठ जी ने उन्हें माफ कर अपने दिल से लगा लिया और ब्रह्मर्षि स्वीकार किया। इस प्रकार अपने शत्रु के साथ भी गलत व्यवहार को उन्होने क्षमा किया और विश्वामित्र पर उपकार किया।

इन्हीं सब अच्छे कर्मों एवं साधनों के प्रभाव के कारण ही यह रघुकुल के उत्पन्न हुए सभी राजकुमारों, दिलीप, आधे धर्मात्मा राजाओं के कुल गुरु बने रहे और पूर्ण ब्रह्म के अवतार भगवान श्री राम तथा साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा मां भगवती एवं उनके अंश भूत भाइयों तथा महाराजा जनक जैसे योगियों के भी आराध्य बन गए

महर्षि वशिष्ठ सभी देवताओं ऋषि-मुनियों एवं योगी जन के पूजनीय रहे हैं। यह माना जाता है कि यह अपनी पत्नी अरुंधति के साथ सप्त ऋषि मंडल में स्थित होकर आज भी सारे जगत के कल्याण में लगे हुए हैं।

भगवान श्रीराम को महर्षि वशिष्ठ द्वारा उपदेश, योग वशिष्ठ नामक ग्रंथ योग एवं वेदांत का विशिष्ट ग्रंथ है। उसमें वैराग्य मुमुक्षु व्यवहार उत्पत्ति स्थिति उपशा तथा निर्वाण यह 6 प्रकरण है । इस ग्रंथ में अपने स्वरूप में स्थित होने की विधियां बताई गई हैं।

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