प्राचीन दन्तकथाओं में एक कथा यह आती है किसी गाँव के किनारे एक टापू पर एक सन्यासी रहा करते थे। उनके बारे में यह कहा जाता था कि वह सब कुछ जानते और भविष्य के बारे में बताते हैं। तथा सभी गाँव वासी अपनी-अपनी समस्या लेकर उनके पास जाते रहते थे। सन्यासी भी उनकी समस्या का समाधान जिस प्रकार सम्भव हो पाता मदत करते थे।
उसी गाँव में दो बालक अच्छे मित्र थे और साथ ही विद्याध्यन करते थे । बाल्यावस्था जीवन की सभी श्रेष्ठ अवस्थाओं में से एक है और सरारत के बिना यह अवस्था अधूरी सी लगती है। एक दिन उनके मन में यह सरारत सूझी कि यह जो सन्यासी हैं वो सबको बेवकूफ बनाते हैं उन्हें कुछ भी पता नहीं है क्योंकि कोई भी मनुष्य भविष्य नहीं जान सकता तो उन्होंने साधु महाराज की परीक्षा लेने का निर्णय किया तथा उनका पर्दा फास करने का निर्णय लिया।
उन्होंने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक योजना का निर्माण किया। योजना में उन्होंने सोचा कि हम एक गौरैया {चिड़िया} को पकड़ेगे और सन्यासी के पास जायेंगे और उनसे 3 प्रश्नों का उत्तर देने की इच्छा प्रकट करेंगे। जब वह प्रश्नों के उत्तर देने के लिए तैयार हो जायेंगे तो हम उस चिड़िया को पीठ के पीछे छुपा लेंगे और उनसे पूछेंगे कि मेरे पीठ के पीछे क्या है?
जब वह उत्तर देंगे कि यह एक चिड़िया है तो हम दूसरा प्रश्न पूछेंगे कि यह कौन सी चिड़िया है? तब वह कहेंगे कि यह एक गौरैया है और इस बात में कोई संका नहीं है कि यह एक गौरैया है और फिर हम तीसरा प्रश्न पूछेंगे कि यह जीवित है या मृत यदि वह जीवित कहेंगे तो हम इसे वहीं पीठ के पीछे हाथों से दबाकर मारे देंगे और यदि मृत कहेंगे तो इसे जीवित ही रहने देंगे। इस प्रकार सन्यासी की कई भी बात झूठी सिद्ध हो जायेगी और हम यह बात सारे गाँव में बताकर उनका उपहास करेंगे। एसी योजना का निर्माण कर वे दोनों टापू की ओर बढ़े।
वहाँ पहुँचकर उन्होंने सन्यासी को अपनी बात बतायी कि हम आपसे 3 प्रश्नों के उत्तर जानना चाहते हैं सन्यासी ने उन्हें कहा कि जितना सम्भव हो सके मैं प्रयास करुँगा और उन बालकों ने अपने प्रश्नों को पूछना प्रारम्भ किया। प्रथम प्रश्न- मेरे पीठ के पीछे क्या है? साधु महाराज ने उत्तर दिया कि कोई चिड़िया है।
उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वे उत्तर जानते थे। दूसरा प्रश्न- यह कौन सी चिड़िया है? साधु महाराज ने उत्तर दिया कि यह कोई छोटी चिड़िया है और यह गौरैया है इस बात पर भी उनको आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर भी वो जानते थे। अब थी तीसरा प्रश्न कि यह गौरैया जीवित है या मृत? इस बात पर सन्यासी ने थोड़ा सोचा जब तक कि वे बालक कुछ प्रतिक्रिया कर पाते साधु महाराज ने कहा कि यह ‘चुनाव आपके हाथ में है’।
वे दोनों बालक स्तब्ध रह गये क्योंकि इस प्रकार के उत्तर की अपेक्षा उनको साधु सन्यासी से न थी वह पहले ही अपने प्रश्नों के उत्तर सोच कर रखे हुए थे।
इसी प्रकार हम अपने प्रश्नों के उत्तरों को वर्तमान तथा भविष्य के साथ पहले ही सोच कर रख लेते हैं परन्तु जब हमें अपने प्रश्नों के गलत उत्तर मिलते हैं तो हमारी सारी अपेक्षा धरी की धरी रह जाती है। इस कहानी का उद्देश्य चुनाव विषयक है क्योंकि यदि हमारा चुनाव सही हो तो रास्ता सही मिल सकता है और दूसरी बात यह है कि किसी भी व्यक्ति की उपेक्षा करना ठीक बात नहीं है क्योंकि यह एक प्रकार का दोष ही हमारे लिये सिद्ध हो सकता है।
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