अंधकार का सूर्य से द्वेष
एक बार अंधकार ने भगवान से प्रार्थना की महाराज, यह सूरज मेरे पीछे पड़ा हुआ है, मैं इसका बिगाड़ता भी कुछ नहीं हूं, पर जहां में बराबर जाता हूं, वहां यह पहुंच जाता है। और मुझे वहां से भाग जाना पड़ता है। वही पहुँच कर ये मुझे क्यों हैरान करता है।
भगवान् ने अंधकार की शिकायत लिख ली। अब भगवान ने सूरज को बुलाकर कहां। तू क्यों अंधकार को हैरान करता है । क्यों उसके पीछे पीछे जाकर उसे भगा देता है। सूरज ने कहा प्रभु मैंने तो उसे देखा तक नहीं है। मुलाकात भी नहीं हुई। फिर भी मुझसे भूल हुई हो या उसे दुख दिया हो, तो उसे यहां बुलाओ । मैं उससे माफी मांग लूंगा । भगवान अभी तक दोनों को इकट्ठा नहीं कर सके हैं। क्योंकि प्रकाश की अनुपस्थिति का अस्तित्व ही अंधकार है। यह स्वयं पैदा होता है।
बोलने का तात्पर्य क्या है कि सत्संग से अधिक कुसंग जल्दी असर करता है। इसीलिए जिसके विषय में आप नहीं जानते हैं। उसे ह्रदय मत दो, मिलो बातें करो ठीक है। अंतरंग जीवन जाने बिना ह्रदय दोगे तो फस जाओगे। कोई आपको संग करने जैसा न लगे। तो शास्त्रों का संग करो। गीता भागवत रामायण उपनिषदों का संग करो। संतो ने दुर्जनो का संग नर्क के बराबर माना है।
दोस्तों बुराई का अस्तित्व कितना भी बड़ा क्या न हो, वो अच्छाई से कभी नहीं जीत सकता। इसलिए शास्त्रो में कहा गया है, ” सत्संग करो” सत्संग ही आपको हर बुरी बात और समस्या से निकाल सकता है । यही जीवन का अटल सत्य है।
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