संत समागम
आजकल लोगों को या किसी को भी प्रत्येक वस्तु को ज्यादा कठिन करने में आनंद आता है। ज्यादा कठिन बनाओ तो लोग कहेंगे की बहुत ज्यादा विद्वान है । सिद्धांत में कुछ ना हो तो भी बहुत पंडित होते हैं। और कठिन से कठिन सिद्धांत को सरल बनाकर लोगों के हृदय में पहुंचाने वाले संत होते हैं।
जैसे तुलसीदास जी ने सीधी भाषा में रामायण लिखी । परंतु इतनी सरल कविता रखने वाले व्यक्ति तुलसीदास के इस दोहा चौपाई आदि को सिद्धांत वादी नहीं मानते या इसके द्वारा सामान्य लोगों को नहीं समझाते, कहेंगे कि आपकी समझ में नहीं आएगा, ऐसा कहकर बुद्धिजीवी अपने बनाए हुए, अनेक मार्ग दिखा रहे हैं। और सामान्य आदमी को लक्ष्य तक पहुंचने नहीं देते गुमराह कर देते हैं मार्ग से !
द्रष्टान्त – एक बड़ा बंगला था। एक व्यक्ति उसमें गया जैसे ही वह अंदर गया तो दरवाजे पर लिखा हुआ था । दाएं तरफ जाइए , वह दाई और गया वहां दूसरे दरवाजे पर लिखा हुआ था सामने वाले दरवाजे में जाइए , वहा उस कमरे में भी दरवाजे पर लिखा था।
अब दाएं हाल की तरफ जाइए। वह फिर दाएं हाथ की तरफ गया उधर भी दरवाजे पर लिखा था, अब बाए तरफ के कमरे में जाइए वह बाएं कमरे में दाखिल हो गया । वहां लिखा था ऊपर जाइए , वहां एक सीढ़ी थी, उस पर चढ़कर वह ऊपर गया।
जहां लिखा था । दाएं हाथ की ओर बढ़िए, वह बेचारा दाएं तरफ मुड़ा था। वहाँ लिखा था, बीच के होल में जाइए, वह बीच के हॉल में गया उधर लिखा था । नीचे जाइए। वह निचे उतरा, उधर लिखा था बीच के ऑल में जाइए वहां गया तो, उधर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था।
यहां वहां क्यों भटक रहा है वापस निकल । ऐसी दशा लोगों ने तत्व -ज्ञान कि की है । ऐसी दशा कोई कहे बाय जा कोई कहे दाएं जा कोई कहे यह कर, कोई कहे वह कर, कठिन करने वाले को भी कुछ नहीं मिलता था। इसलिए उसे कहना पड़ा कि यहां वहां क्यों भटक रहा है बाहर निकल।
यह लेख हमें देव प्रकाश लखेडा जी ने ऋषिकेश से भेजा है । यदि आप को भी कुछ लिखने का शोक है तो आप भी हमें besthindithought@gmail.com पर अपने लेख भेज सकते है।
अवश्य पढ़े – कबीर दास के दोहे