एक गरीब लकड़हारा था। वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए कड़ी मेहनत करता था । वह रोज जंगल जाता और लकड़ी काटकर अपने परिवार का भरण पोषण करता। यही उसका रोज का रूटीन था। एक दिन वहां का राजा शिकार के लिए जंगल गया । जंगल में उसे वह लकड़हारा दिखा। वह पूरी मेहनत से लकड़ियां काट रहा था।
राजा को दया आई और उसकी मदद करने का विचार बनाया । लकड़हारे के पास गया और कहां मेरे पास कुछ खेत पड़े है। उस पर चंदन के वृक्ष खड़े हैं। में वह तुम्हें देता हूँ। तुम उनको काट कर के बेच देना।
लकड़हारे ने राजा का धन्यवाद किया। लकड़हारे को खेत देकर राजा वहां से चला गया।
दरअसल किसान को चंदन के वृक्षों का मूल्य पता नहीं था। वह चंदन को साधारण वृक्ष समझता था । उसने पेड़ काट कर बेचने शुरू कर दिए। कुछ महीनों बाद जब राजा फिर से वहां से गुजरा तो उसकी वहीं दशा पाई। यह देख कर राजा हैरान हो गया। जब राजा ने उसे पूछा कि तुमने लकड़ी कितने रुपयों में बेची। तब राजा को पता चला कि की उसने वह लकड़ी सस्ते दामों पर बेच दी । तब राजा ने उसे उन लकड़ियों का वास्तविक मूल्य बताया। अब लकड़हारे को अपनी गलती एहसास हुआ।
अब तक वह लगभग लकड़ियां बेच चुका था। लेकिन कुछ लकड़िया अब भी उसके पास थी।
राजा ने बाकि लकड़ियों को उचित मूल्य पर बेचने को कहा। उसने उन बाकी लकड़ियों को उचित मूल्य पर बेचा। जिससे उसका बाकि का जीवन का ठीक से गुजर बसर हुआ। अगर वह सही समय पर उचित अवसर को पहचान जाता, तो अधिक धनवान हो जाता।
इस कहानी से हमें ये शिक्षा लेनी चाहिये की हमें उचित अवसर का उचित लाभ उठाना चाहिए।
हमें जो जीवन मिला है वह किसी चन्दन की लकड़ी से कम नहीं है। हमें अपने जीवन के असली लक्ष्य को पहचान कर उसे पाने की कोशिश करनी चाहिए।