एक बार की बात है एक पेड़ पर कौवे का एक जोड़ा रहता था। वह दिन भर यहाँ वहां भोजन की तलाश में जाते और रात को उसी पेड़ पर बने घोसले में लोट आते। दोनों के दिन अच्छे से गुजर रहे थे। लेकिन कुछ दिन बाद उसी पेड़ की जड़ में एक सांप आकर रहने लगा। पेड़ की जड़ निचे से खोखली थी इसलिए सर्प को इस में बिल बनाने में देर नहीं लगी और वह सांप इसी पेड़ की जड़ में रहकर आस पास के छोटे जीव जन्तुओ को खाने लगा।
सांप अक्सर कौवे के जोड़े को रोज उन के घोंसले से निकलते देखता था। वह समझ गया था की वह भी इसी पेड़ पर रहते है।उनके जाने के बाद वह उनके घोंसले पर एक नजर मार आया करता। कुछ दिन बाद माधा कौवी ने कुछ अंडे दिए। लेकिन अगले दिन जब वह भोजन की तलाश में गए तो उस सांप ने वह अंडे खा लिए। शाम को जब कौवे का वह जोड़ा घर आया तो अड़े न देख कर हैरान रह गये। दोनों समझ गए की कोई जीव उनके अंडे खा गया। कौवे ने कोवी की हिम्मत बड़ाई और अगली बार की उम्मीद दिखयी।
कुछ समय बाद कोवी ने फिर से अंडे दिए पिछली बार की तरह साँप इस बार भी अड़े खा गया।लेकिन इस बार दोनों ने साँप को अपने अंडे खाते देख लिया। अब कोवी ने कौवे को ये जगह छोडने के लिए कहा। लेकिन कौवे ने कहा माना की यहाँ साँप का डर है लेकिन हमें इस तरह ये जगह नहीं छोड़नी चाहिए। कौवे ने कहा में कुछ रास्ता निकालता हूँ। कौवे ने कहा हम इसी पेड़ पर सबसे ऊपर वाली टहनी पर अपना घर बनायेगे।और यदि साँप वहाँ गया तो उसे बाज या चील देख लेगे और खा लेंगे।
अगली बार फिर से जब कोवी ने अंडे दिए तो वह इन की देखरेख करते रहे और उनसे छोटे छोटे बचे भी निकल आये। साँप जब उनकी गैर मोजुदगी में वह गया और घोसला न देखा तो वह समझा की वह कही और चले गए। लेकिन जब वह रोज सुबह उनको वहाँ से उड़ते देखता तो वह समझ गया की वह सबसे ऊपर वाली डाल पर रहते है।
लेकिन एक दिन जब दोनों भोजन की तलाश में बहार गए तो सांप मोका देखकर बच्चों को खा गया। दोनों जब वापस आये तो और बच्चों को न देखकर भौचके रह गए। वह समझ गए की बच्चों को साँप खा गया। अब कोवी ने यहाँ से जाने की ठान ली।आखिर कब तक वह अपने बच्चो को इसी तरह मरते देखते।
कौवे ने कहा माना समस्या थोडा जटिल है। लेकिन हमें घर छोडने से के बजाय किसी से मदद लेनी चाहिए। अब को वह मदत लेने के लिए अपने मित्र हंस के पास गया। हंस पास वाली नदी में बने एक तालाब में रहता था। कौवे जब वहां पानी पिने जाता तो उस समय उस की दोस्ती उससे हो गयी थी। वह हंस के पास गया और सारी बात बता दी। हंस काफी समझदार था। उसने एक योजना बनायीं। कौवे को भी योजना पसंद आई और वह तैयार हो गया।
योजना पर काम अगले दिन होना था। इसी नदी में एक राजकुमारी अपनी कुछ सहेलियों के साथ सैनिकों के संरक्षण में स्नान के लिए आती। अब इन सबका ध्यान अपनी और करने के लिए हंस इन के सामने आ गया और हंस को देखकर के इन सबका ध्यान हंस की और हो गया। इसी बिच कौवे ने राजकुमारी का हीरो का हर उठा लिया और उड़ने लगा।
तभी जैसे ही कोवा उड़ने लगा उस पर सैनिकों की नजर गई और वहां कौवे का पीछा करने लगे कोवा भी धीरे धीरे उड़ रहा था और वह सैनिकों को उसी पेड़ के पास ले गया और उसने वह हीरो से जड़ा हुआ हार पेड़ की जड़ में बने सांप के बिल में डाल दिया । तभी वहां सैनिक भी पहुंच गए और उन्होंने वह हार कोवे को बिल में डालते हुए देख लिया ।
जब सैनिकों ने हार निकालने की कोशिश की तो उन्होंने पाया की हार के ऊपर एक सांप बैठा हुआ है । तभी एक सैनिक ने अपना भाला सांप के मुंह पर मार दिया भाला लगने के कारण वह सांप बिल से बाहर आ गया और जैसे ही वह बिल से बाहर आया बाकी सैनिकों ने उसे भाले से मार दिया इस प्रकार कौवे ने हंस के बताए हुए प्लान के हिसाब से सांप को मरवा दिया ।
तो मित्रों हमें दुष्ट सांप का अंत इस कहानी से यह सीख लेनी चाहिए कि बुद्धिमानी से हम किसी भी कार्य को आसान बना सकते हैं बजाए उससे दूर भागने के धन्यवाद।
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