आसनों का महत्व , ज्ञान व वर्गीकरण :- योग में आसनो का बडा ही महत्व है जिन का हमारे शरीर पर बडा ही चमत्कारी प्रभाव पडता है। जिसका रोगो पर अदभुद प्रभाव पडता है व धीरे धीरे हमारी बिमारीया ठीक होने लगती है। हमारी रोगो से लडने की क्षमता बढ जाती है। व शरीर हल्का हो जाता है। जिसके फलस्वरुप धीरे धीरे इनके निरन्तर अभ्यास से हमारा मन, मस्तिक व इन्द्रिया नियंत्रण में रहने लगती है। हमें अध्यात्मिक तथा शारीरिक दोनो प्रकार के लाभ मिलते है। अंत में एक संतुलन की अवस्था प्राप्त होती है।
योग के क्षेत्र में हुये प्रसिद्ध ऋषि पंतजलि ने आसन को परिभाषित करते हुये कहा है कि स्थिरं सुखम आसनम
अर्थात जिस अवस्था मे हम सुख पूर्वक तथा स्थिर होकर लम्बे समय तक बैठ सके।
योग तथा अध्याम के क्षेत्र मे आसनो के माध्यम से साधक अपने शरीर को लम्बे समय तक सुख पूर्वक तथा स्थिर रखने के लिए तैयारकरता है जिससे साधक अपनी साधना को अंतिम ल़क्ष्य तक पंहुचा सके।
इन आसनो का अविश्कार प्राचीन समय में हमारे ऋषि मुनियो ने किया था। उस समय ऋषि मुनि इन आसनो का प्रयोग अपने शरीर का स्वस्थ व सबल बनाने के लिये किया करते थे। जिससे वह ध्यान में अधिक समय तक रह सके। लेकिन वर्तमान समय में मानव की जीवन शैली तेज, तकनीक से घीरी व भोजन में आये बदलाव के कारण रोगो व तनाव से ग्रसित हो गयी है। जिससे निजात पाने के लिये मनुष्य नशे का प्रयोग करने लगा है। जिसके फल स्वरुप मानव को अपने जीवन से हाथ धोना पडता है। ऐसे में योग में वर्णित आसन मानव जीवन के लिये किसी वरदान से कम नही है।
इन आसनो को हम तीन भागो में विभाजित कर सकते है। जिससे सभी प्रकार के योगाभ्यासी इन आसनो को कर सकते है। चाहे वह नये अभ्यासी हो या पुराने।
1 ध्यानात्मक-
2 शांतिदायक-
3 शरीर सवर्धनात्मक आसन-
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