साँझ का समय था। रात होने वाली थी। जल काक का एक समूह समुद्र के किनारे से जा रहा था। सभी आपस में बाते करते हुये उड रहे थे। तभी एक कौआ उनका मजाक उडाने की कोशिश करने लगा। और उन्हे कहने लगा तुम लोग पंख फेलाकर उडने के शिवा कर ही क्या सकते हो। पंख फैलाकर जाना और पंख फेलाकर उडते हुआ वापस आना यही तुम्हारा रोज का रुटीन होता है।
क्या तुम मेरे जैसे चतुराई से हवा में तेज उड सकते हो। मै रोज हवा में कितने करतब करता हूँ और कितने मजे लेता हूँ । लेकिन यह सब तुम सब से न होगा। भला तुम सब यह कैसे कर सकते हो। कौवे की बाते सुनकर तभी एक सबसे समझदार व बुढा जल काक बोला लेकिन तुम्हे अहंकार नही करना चाहिये। अगर तुममे यह विशेषता है तो यह का अच्छी बात है। तुम चतुराई से उड सकते हो। लेकिन इस पर तुम्हे गुमान नही करना चाहिये।
लेकिन निन्दा व अंहकार में डुबे कौवे को यह बात समझ में नही आयी। वह कहने लगा यह कोई बात नही हुयी। यदि तुम में सामर्थ्य है तो मुझसे प्रतियोगिता करे। और मुझसे जीतकर दिखाये। फिर एक समझदार जलकाक ने कौवे की प्रतियोगिता वाली बात स्वीकार कर ली। जलकाक ने प्रतियोगिता को दो भागो में होना तय किया।
और कहा प्रतियोगिता के पहले भाग में कोवा अपने करतब दिखायेगा और मुझे भी ठीक उसी प्रकार करना होगा। दूसरे भाग में जो करतब मै दिखाउगा वही सब कौवे को भी करना होगा। कौवा तैयार हो गया। प्रतियोगिता अगले दिन रखी गयी। सुबह होते ही कौआ वही समुद्र के किनारे पे आ गया। प्रतियोगिता का पहला भाग शुरु हुआ। कौआ ने शर्त के अनुसार पहले उडना शुरु किया वह पुरी जान से उड रहा था। व कही प्रकार के करतब हवा में करने लगा।
जलकाक ने भी वैसा करने की पुरी कोशिश की लेकिन वह कौवे के समान न कर पाया। कौवा कहने लगा मै तो पहले ही कह रहा था। तुम लोग सीधे उडने के शिवा कुछ कर ही नही सकते हो। प्रतियोगिता का पहला भाग कोवे के पक्ष में रहा। अब प्रतियोगिता का दूसरा भाग शुरु हुआ। जलकाक समुद्र के ऊपर उडने लगा और वह घमण्डी कौआ भी उसके पीछे पीछे उडने लगा। जलकाक सीधे उडे जा रहा था। कौवा बोला ये क्या एक जैसा उडे जा रहे हो यह भी कोई उडना हुआ।
लेकिन वह समझदार जलकाक कुछ न बोला। और सीधे उडता रहा। कुछ देर बाद वह काफी दूर जा चुके थे। अब कौवा थक चुका था और चुपचाप से पीछे पीछे उड रहा था।
धीरे धीरे कौवे की सामर्थ्य खत्म हो रही थी। लेकिन वह जैसे तेैसे उड रहा था व बीच बीच में गिर के पानी के पास पहुंच जाता लेकिन जैसे तेसे खुद को सभाल लेता। जलकाक चुपचाप से उडे जा रहा था। उसे कौवे की स्थिति का अनुमान हो गया था। लेकिन वह चुप था।
अब जब कौवे के जान पर बन आयी तो वह बोला भाई जलकाक मुझे अपनी गलति का एहसास हो गया है। मुझसे बहुत बडी गलती हो गयी। अब तुम किसी तरह मेरी जान बचा लो नही तो में पानी में डूब कर मर जाउगा। आगे से कभी भी स्वंय पे अहंकार नही करुगा।
अपनी गलती का एहसास होने पर जलकाक ने भी उसकी मदद करने की सोची और उसे क्षमा कर दिया। जलकाक ने उसे अपनी कमर पर बिठाया और उसे वापस समुद्र के किनारे पर छोड दिया।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा लेनी चाहिये कि हमें कभी स्वंय पर अहंकार नही करना चाहिये। अहंकार की पतन का कारण बनता है। अहंकार होने पर बुद्धि का पतन हो जाता है जो हमारे विनाश का कारण बनता है। हमारा अहंकार हमे सत्य को स्वीकार नही करने देता और स्वयं को सिद्ध करने के लिये हम बेकार की हरकते कर बैठते है।
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