संधि क्या है | Sandhi Kya Hai

संधि का शाब्दिक अर्थ = मेल 

संधि परिभाषा –

संधि दो वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार (परिवर्तन) को कहते है

जैसे – रजनी + ईश = ई +ई = ई = रजनीश 

       कवि + इंद्र = इ + इ = ई  = कवीन्द्र 

विद्या +आलय = आ+आ =आ =  विद्यालय 

संधि विच्छेद –

संधि के नियमो से बने शब्द को वापस उसके मूल रूप में लाना (तोड़ देना) संधि विच्छेद कहलाता है। 

अर्थात किसी शब्द को अलग करना संधि विच्छेद कहलाता है। 

जैसे – 

परमेश्वर = परम +ईश्वर (संधि  विच्छेद)

रजनीश = रजनी + ईश 

विद्यालया = विद्या + आलय

संधि के भेद – 

संधि के भेद तीन प्रकार के होते है। 

1  स्वर संधि 

2 व्यंजन संधि 

3 विसर्ग संधि 

स्वर संधि –   

स्वर सन्धि में  दो स्वर स्वर केे मेल से विकार उत्पन होता है।

अर्थात दो स्वरो के मेल से जो विकार उत्पन होता है उसेे स्वर संन्धि कहते है। 

जैसे 

शिवालय = शिव + आलय = अ + आ = आ 

पुस्तकालय = पुस्तक+ आलय = अ +आ = आ

स्वर संधि के भेद 

स्वर संधि के पांच भेद होते है

१   दीर्ध स्वर संन्धि 

२   गुण स्वर संन्धि

३  र्वद्वि स्वर संन्धि

४  यण स्वर संन्धि

५  अयदि स्वर संन्धि

दीर्घ स्वर संन्धि- 

एक ही मुल स्थान से उच्चारित सजातीय स्वर संधि होने पर अपने दीर्ध रूप में परिवर्तित हो जाते है।

अ +आ = आ 

अ + आ = आ 

आ + आ = आ

इ  + इ = ई

इ + ई + ई

ई + ई =ई 

उ +उ = ऊ

ऊ + उ =ऊ

ऊ + ऊ =ऊ

ऋ + ऋ = ऋ

नोट 

हस्व + हस्व = दीर्ध 

हस्व + दीर्ध = दीर्ध

दीर्ध + हस्व = दीर्ध

दीर्ध + दीर्ध =  दीर्ध

 अ + आ = आ

कोण + अर्क = अ + आ = आ =  कोणार्क

स्वर्ण + अवसर = स्वर्णावसर 

अस्त + अचल = अस्ताचल 

वीर + अंगना = वीरांगना 

मत + अनुसार= मतानुसार 

सूर्य + अस्त  = सूर्यास्त  

राम +अमन = रामायण 

 अ + आ = आ

पुस्तक + आलय = पुस्तकालय 

हिम + आलय = हिमालय 

रत्न + आकार = रत्नाकार 

कुश +  आसन = कुशासन 

धर्म + आत्मा = धर्मात्मा

शुभ + आगमन = शुभागमन 

नित्य + आनंद = नित्यानंद 

परम + आवश्यकता= परमावश्यकता 

आ + आ  = आ 

दया  + आनन्द = दयानन्द

विद्या + आलय  = विद्यालय 

महा + आत्मा  = महात्मा 

वार्ता + आलाप = वार्तालाप 

श्रद्धा + आनन्द = श्रद्धानन्द

आत्मा + आनंद = आत्मानदं 

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