कोशिका | Cell kya hai

कोशिका  Cell: – जिस प्रकार किसी मशीन क आधार अनेको पुर्जे होते है, उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी अनेक अवयवो से मिलकर बना होता है।

 मानव शरीर में असंख्य सुक्ष्म इकाइंया होती है। जिन्हे कोशिका या cell  भी कहते है, शरीर के विभिन्न अंगो की कोशिकाओं में भिन्नता होती है परन्तु समस्त कोशिकाओं की रचना एक समान होती है।जिन्हे आँखो से नही सिर्फ (Microscope) से ही देखा जा सकता है।

                  कार्या की भिन्नता के कारण कोशिका के आकार व आकृति में अन्तर होता है परन्तु कुछ गुण सभी में समान होते है, समान गुण वाली एक ही आकार की तथा एक ही कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को  (Tissue)  ऊतक कहते है। इन्ही ऊतको के द्वारा अंगो का निर्माण होता है। जैसे हदय, अमाश्य, यकृत आदि।

कोशिका  →  ऊतक  →  अंग तंत्र   →   शरीर का निर्माण

 (Cell)  →    (Tissue)  → (Body Parts) →  (Body)                                

  •   (1665)   Robert Hook  ने मृत कोशिका  (Dead Cell)  की खोज की
  • (1673)  जीवित कोशिका की खोज की  (Antony Van Leeuwenhoek )
  • Study of Cell :- कोशिका विज्ञान (Cytalogy)
  • कोशिका का सिद्धांत –  (Slyden and Swan)
  • (जीव) सबसे छोटी कोशिका & Mycoplasma
  • (जीव) सबसे बड़ी कोशिका & Ostrich
  • (Human Beings) छोटी कोशिका:- Males (Sperm)
  •  (Human Beings) सबसे बड़ी कोशिका:-Females (गर्भाशय)
  • सबसे लम्बी कोशिका :- Brain (Neuron)
  •  न्यूरोन में कोशिका  विभाजन ज्यादा हो जाए तो 90 प्रतिशत Brain Cancer के  chance  रहते है।
  • सबसे तेज कोशिका का विभाजनः- यकृत (Liver)

कोशिका की रचना

Cell wall (कोशिका कला)

यह एकमात्र आवरण नही है, अपितु कोशिका की क्रियाशीलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक छलनी की भाँति कार्य करती है, जिसके फलस्वरूप कुछ पदार्थ प्रवेश नही कर पाते। कोशिका के भीतर ही पदार्थ जैसे  O2 Co2     H2O तथा शूगर ही आर-पार जा सकते है।

  • (In short) के चारो ओर एक दीवर बनी होती है वह कोशिका कला होती है।
  • (Cytoplasm)   कोशिका द्रव्य

प्रत्येक कोशिका के भीतर जीव द्रव्य भरा होता हैं।

कोशिका के मध्य एक अण्डाकार रचना होती है जिसे केन्द्रक  (Nucleus)   कहते है।

  • जीवद्रव्य के केन्द्र तथा कोशिका कला के मध्य के भाग को अर्थात् कला के भीतर द्रव के चारो ओर घेरने वाले भाग को (Cytoplasm)  कहते है।

 Proto Plasm –

जीवद्रव्य एक रंगीन चिपचिपा गाढा द्रव होता है। जिसमें 60-90 प्रतिशत जल के अतिरिक्त 15 प्रतिशत Protein, 13 प्रतिशत Carbohydrates होते है। जिसमें वसा की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है इसमें Vitamins भी पाए जाते है। जीवद्रव्य में Hormones भी होते है। जो शरीर के विभिन्न अंगो में होने वाली क्रियाओं पर नियंत्रण रखते है जिसका प्रभाव शरीर के स्वास्थ्य वृद्धि व कार्यशीलता पर पडता है। इसमें काफी मात्रा में खनिज लवण पाए जाते है।

जिसमें शरीर को Sodium Chloride की अत्यंत आवश्यकता होती है। जीवद्रव्य में सभी जैविक क्रियाएँ जैसेः- वृद्धि, श्वसन, गतिशीलता उत्तेजना, तथा प्रजनन आदि क्रियाए हमेशा होती रहती है बाहरी किसी भी स्पर्श जैसे:- सुई चुभाना, करंट लगना, आदि क्रियाए होने पर जीवद्रव्य सिकुड जाता है, ओर कुछ समय पश्चात् सामान्य अवस्था में आ जाता है जीवद्रव्य के नष्ट हो जाने पर शरीर की सभी क्रियाएं तत्काल रूक जाती है।

कोशिका के कार्य व विशेषताएँ

1. श्वसन             (Respiration)

2. स्वांगीकरण        (Assimilation)

3. उत्सर्जन           (Excretion)

4. वृद्धि एवं क्षतिपूर्ति   (Growth & Repair)

5. प्रजनन            (Reproduction)    

6. उत्तेजनशीलता      (Irritability)

7. गति             (Movement)

कोशिका की संरचना

1. माइटोकाड्रिंया    (Mitro candria)

2. गाल्जिउपकरण   (Golgiapparutur)     

3. सेन्ट्रोसोम      (Centrosome)

4. लाइसोसोम      (Lysosome)

5.एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम (Endoplasmic Reticulum) 

6. राइबोसोम       (Ribosome)

माइटोकाड्रिंयाः-

इन्हे सुत्र कणिका भी कहते है। इन सुक्ष्म दण्डकार अवयवो का कोशिका की विघ्यकारी या अपचयात्मक (Catabolic)  तथा  4mm लम्बी होती है।

यह जीव द्रव्य में घूमते-फिरते नजर आते है किन्तु इन्हे माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है।

इनके आकार में परिवर्तन होता रहता है। इनके भीतर श्वसन एन्जाइम्स पाये जाते है, जिनकी सहायता से कोशिका के भीतर पचकर आये भोजन का ऑक्सीकरण करके उनकी संग्रहित शक्ति को गतिज शक्ति में बदलते रहते है, इससे कोशिका को कार्य करने की शक्ति मिलती है। इसी कारण माइटोकाण्ड्रिया को शक्तिग्रह  (Power House ) कहते है।              

माइटोकाड्रिंया कार्यः-

(I)     साइटोप्लाज्म में अण्डाकार या रॉड के समान रचनाएँ चारो ओर बिखरी रहती है।

(II)      इसे ऊर्जा गृह (पावर हाउस) भी कहा जाता है । क्योंकि यह कोशिका के भीतर पचकर आये हुए भोजन का ऑक्सीकरण करके ऊर्जा को संग्रहित करता है।

(III)    कोशिका श्वसन के लिए उत्तरदायी है।

गाल्जिउपकरणः-

             यह एक नली के सदृश्य सुक्ष्मकण है, जो न्यूक्लियस के समीप स्थित रहने वाली एक सुक्ष्मनली की झिल्लीनूमा रचना होती है, जिसमें धागो के समान कई सुक्ष्म लघुकोश होती है जिनका कोशिका की श्रव क्रिया से सम्बन्ध होता है।

गाल्जिउपकरण के कार्यः-

 (I)     न्यूक्लियर्स के समीप छड़ की आकृति की रचना है।

(II)     इसमें कुछ अधिक गहरे रंग की दो गोलाकार रचनाये होती है जिन्हे सेन्ट्रियोल कहा जाता है।

(III)     सेन्ट्रोसोम इन्ही सेन्ट्रियोलस् द्वारा कोशिका विभाजन में महत्वपूर्ण भाग लेता है।

(IV) तन्त्रिका कोशिकाओं में सेन्ट्रोसोम और सेन्ट्रीयोल्स नही होते है, इसलिए यह उत्पादन में असमर्थ होते है।

सेन्ट्रोसोमः-

इसे तारककाव्य भी कहते है। साइटोप्लाज्म का यह सघनपिण्ड न्यूकिलियस के समीप स्थित होता है इसमें एक या दो और गाढी रचनायें होती है जिन्हे सेन्ट्रिआल कहा जाता हैं । सेन्ट्रिसोम और सेन्ट्रीआल दोनो मिलकर कोशिका विभाजन का कार्य करती है।

सेन्ट्रोसोम के कार्यः-

(I)    इस सम्बन्ध में कोशिका की रासायनिक क्रिया विशेषकर श्रवण की क्रिया होती है।

(II)    यह ग्लाइकोप्रोटीन (Glycoprotein) को श्रावित करता है।

 (III)    यह अपनी आकृति, स्थिति एंव आकार कोशिका की सक्रियता के अनुसार बदलता रहता है।

(IV) कोशिका में उत्पन्न हुई श्रवी उत्पादक इसी गाल्जिउपकरण में एकत्रित होता है। तथा कोशिका कला तक ले जाकर इन्हे बाहर छोड दिया जाता है।

लाइसोसोमः-

यह कोशिका द्रव्य में अण्डे जैसी सुक्ष्म संरचनाए होती है। इनमें कई प्रकार में महत्वपूर्ण एंजाइम्स की उत्पत्ति होती है, जो कोशिका के भीतर बडे अणुओं को छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित करने में सहायता करती है जिससे कच्चे पदार्थ कोशिका से बाहर निकल जाते है इसे आत्महत्या की थैली (Sucide Bag)    के नाम से भी जाना जाता है।

लाइसोसोम कार्यः-

 (I)     यह अण्डाकार या गोलाकर थैली के समान होती है।

(II)      इन रचनाओं में हाइट्रोलाइटिक एन्जाइम्स उत्पन्न होते है।

(III)   यह कोशिका के भीतर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, न्यूक्लियर एसिड  (RNA, DNA) के बडे अणुओं को छोटे-छोटै अणुओं में खण्डित कर देते ह और जो बाद में माइट्रोकाण्ड्रिया के द्वारा अवशोषित होते है।

(IV)   किन्ही विशेष परिस्थितियों में लाइसोसोम अपनी अन्तर्पद्धार्थ को भी पचा जाते है इसलिए इन्हे आत्महत्या की थैली भी कहा जाता हैं

 (V) इन्हे पाचन उपकरण भी कहा जाता है।

एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलमः-

             यह कोशिका द्रव्य में छोटी छोटी नलिकाओं की एक श्रंखला होती है जिसमें एस्टरोइड हार्माेन्स का निर्माण होता है, इनमें कुछ ऐसे प्रोट्रीन बनते है जो औषधियों के लिए सहायक होते है। इनके अन्दर राइबोसोम भरे होते है जो राइबोन्यूक्लियर एसिड से बने होते है।

राइबोसोमः-

           Ribosomes, Mitochondria  से बहुत छोटी रचना होती है ये कोशिका द्रव में एकाकी या समूह में बिखरे रहते है। राइबोसोम राइबोन्यूक्लिइक एसिड (RNA) से भरपूर होता है।

समस्त कोशिका का 60 प्रतिशत प्रोटीन इन्ही में रहता है।

       Ribosomes प्रोटीन संश्लेषण से सम्बन्धित है। इसलिए इन्हे Protein Factory  भी कहा जाता है।

केन्द्रक  (Nucleus)

 यह कोशिका का महत्वपूर्ण भाग है। लाल रक्त कोशिकाओं (erythrocutes or RBC)  को छोडकर शरीर की समस्त कोशिकाओं के मध्य भाग में एक गोलकार रचना होती है। जिसे केन्द्रक कहते है।

कंकालीप पेशी एवं कुछ अन्य कोशिकाओं में एक से अधिक केन्द्रक होते है केन्द्रक कोशिका का सबसे बड़ा अंग होता है।

यह चारो तरफ से एक आवरण से घिरा रहता है जिसे केन्द्रक कला कहते हैं इसकमे अन्दर के जीव द्रव्य को केन्द्रक द्रव्य कहते है। इसके अन्दर एक जाल बिछा रहता है जिसे क्रोमेटिन नेटवर्क कहते है

केन्द्रक द्रव्य (Protoplasm) ही कोशिका की वृद्धि एवं कोशिका को दो सन्तति कोशिकाओं (Daughter cell) में विभाजित होने के लिए आवश्यक सूचनाएँ जमा रखता है।

इन क्रोमेटीन में कई सूत्रवत रचनाएँ होती है। जिन्हे गुणसूत्र या (Chromosomes)  कहते है।

ये डी-ऑक्सी-राइबो-न्यूक्लिइक एसिड (DNA)  और हिस्टोन्स नाम प्रोटीन के पस्पर कुण्डली बने गुच्छे -क्रोमोसोम  (Chromatin)  से बनते है।

इन क्रोमोसोमों पर लडी के रूप में अनेक सुक्ष्म रचनाऐं विघमान होती है जिन्हे जीन (Gen)  कहते है।

इन्ही जीन्स के द्वारा गुणसूत्र एक वंश से दसरे वंश तक अनुवांशिक गुणों को पहुँचाते है इसे कोशिका का नियंत्रक भी कहते है।

केन्द्रक के कार्यः-

यह जीव द्रव्य में होने वाली जैविक क्रियाओं जैसे पाचन श्वसन वृद्धि आदि पर नियंत्रण रखता है

यह कोशिका विभाजन में भाग लेता है।

केन्द्रक के मुख्य भागः-

 (i)     केन्द्रक कला

(ii)     केन्द्रक द्रव्य

(iii)     गुणसूत्र

(iv)    केन्द्रिकाए उपकेन्द्रक

केन्द्रक कलाः-

            यह केन्द्रक के चारो ओर दोहरी परत वाली एक पतली झिल्ली होती है। जिसके द्वारा केन्द्रक कोशिका द्रव्य से अलग रहता है। इसमें जगह जगह छिद्र होते है जिससे केन्द्रक से कोशिका द्रव्य से केन्द्रक में जाने वाले पदार्था पर नियत्रंण रखा जाता है।

केन्द्रक द्रव्यः-

            यह केन्द्रक के अन्दर पाया जाने वाला द्रव्य होता है। जो जीव द्रव्य का ही भाग होता है। अतः इसके कार्य भी जीव द्रव्य के ही समान है।

गुणसूत्रः-

        केन्द्रक के भीतर मुख्यतः प्रोटीन के बने दर्जनों अणुओं के गुच्छे होते है। इन गुच्छो को क्रोमोटीन (Chromatin) कहा जाता है जीन (Gen)  पाये जाते है। इन्ही के द्वारा गुणसूत्र एक वंश से दूसरे वंश तक अनुवांशिक लक्षणों को पहुँचाने का कार्य करते है। सभी जीवों में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है

जैसे                              

 सभी जीवों में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है जैसे मनुष में 23 जोडे (46-गुणसूत्र) होत है।

उपकेन्द्रक:-

        केन्द्रक के भीतर छोटी सी रचना होती है, जिसे उपकेन्द्रक या न्यूकेन्द्रक कहते है। जो कुछ प्रकार की प्रोटीन का संश्लेषण करता है RNAक तथा राइबोसोम का संश्लेषण

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