हठयोग में बाधक तत्वों का परिचय :-
हठ प्रदीपिका अनुसार बाधक तत्व-हठ प्रदीपिका में छह प्रकार के बाधक तत्व भी बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं -अत्याहार, अति प्रयास, नियम आग्रह, जनसंघ, अधिक बोलना, जनसंघ, चंचलता ये 6 योग को नष्ट करने वाले तत्व है अर्थात योग मार्ग में प्रगति के लिए बाधक है।
अत्याहार-
अधिक भोजन करना आहार को अधिक मात्रा में ग्रहण करने से शरीर की जठराग्नि अधिक मात्रा में खर्च होती है तथा विभिन्न प्रकार के पाचन संबंधी रोग जैसे अपच कब्ज अम्लता आदि उत्पन्न होती है। यदि साधक अपनी उर्जा साधना में लगाने के स्थान पर पाचन क्रिया हेतु खर्च करता है या पाचन रोगों में निराकरण हेतु षटकर्म, आसन आदि क्रियाओं के अभ्यास में समय नष्ट करता है तो योग साधना प्राकृतिक रूप से बाधित होती है।
अति प्रयास-
योग साधक को अत्यधिक शारीरिक व मानसिक श्रम से बचना चाहिए। यह शारीरिक व मानसिक श्रम राजसिक व तामसिक गुणों की वृद्धि के साथ साथ शारीरिक व मानसिक ऊर्जा में असंतुलन पैदा करते हैं। अतः अति प्रयास योग साधना में बाधक है।
अधिक बोलना
अधिक बोलने की व्यवहारिकता से शारीरिक और मानसिक उर्जा के ह्रास से समय भी नष्ट होता है। अधिक बोलने से लोक संपर्क में वृद्धि होती है और यही वृद्धि नकारात्मक वृत्तियों जैसे ईर्ष्या द्वेष लोभ मोह आदि योग मार्ग में बाधक तत्व है।
नियमाग्रह
योग साधक के लिए धार्मिक सामाजिक मान्यताओं नियमों का पालन आवश्यक नहीं है जैसे यदि प्रातः काल ठंडे पानी से स्नान आवश्यक माना गया है तो रोग अवस्था में या अत्यधिक सर्दी के मौसम में इस नियम का पालन आवश्यक नहीं है। अत्यधिक नियम आग्रह योग साधना मार्ग में बाधक है।
जनसंघ
अत्यधिक लोक संपर्क से शारीरिक व मानसिक ऊर्जा का ह्रास होता है। इससे समय भी नष्ट होता है। जितने लोगों के साथ आपका संपर्क होगा। उतनी ही आपकी योग साधना मार्ग में बाधा उत्पन्न होगी। लोगों से नोकझोंक होगी। मन व शरीर को अस्थिर कर योग मार्ग में बाधा बनेगी। इसीलिए इसे निषेध बताया गया है।
चंचलता
यह वृत्ति भी योग साधना मार्ग में बाधक है शरीर की अस्थिरता दीर्घ समय अवधि की साधना हेतु बाधक बनती है। नकारात्मक वृत्तीया जैसे ईर्ष्या द्वेष आदि मन की चंचलता बढ़ाकर योग मार्ग में विघ्न उत्पन्न करती है।