सात चक्र क्या है
चक्र मानव शरीर में अलग अलग स्थानो पर सात प्राण उर्जा के केन्द्र है जो हमारे शरीर में व्यात प्राण के प्रवाह को नियन्त्रित रखते है। जिनके कारण से ही मनुष्य के शरीर में सतुलन बना रहता है। यह सात चक्र ही प्रकति से उर्जा ग्रहण करते है और यह चक्र उर्जा केन्द्र के रुप में शरीर में कार्य करते है। साधरण भाषा में कहा जाये तो यह शरीर में लाईट के स्विच बटन के समान कार्य करते है।
इन चक्र को ऋषि मुनियो के द्वारा ध्यान की गहन अवस्था में देखा गया है। इनको शरीर के साथ चीर फाड करके नही देखा जा सकता है। यह सात चक्र शरीर में मे़रूदण्ड के साथ सुष्मना नाडी के साथ लगे है।
शरीर में स्थित यह चक्र मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्त्रार के नाम से जाने जाते है।
मूलाधार चक्र
मूलाधार चक्र शरीर में पु़रूषो के जननांग औैर गुदा द्वार के मध्य में लगभग दो सेन्टीमीटर भीतर की और होता है औैर स्त्रियो में यह ग्रभासय ग्रीवा कें पीछे पाया जाता है। योनि एवं ग्रभासय के मध्य स्थित होता है।
मुलाधार चक्र ही आदि शक्ति कुण्डलिनी का निवास स्थान है । मुलाधार चक्र ही इस जगत में नाम रूप में उत्न्न हुयी हर प्राण शक्ति के लिये उतरदायी है।
प्राणिक विज्ञान के अनुसार मुलाधार ही प्राण उर्जा की उत्पति का स्त्रोत है। इसमें लाल रंग की चार पंखुडिया पायी जाती है। इसका बीज मंत्र लं है
रंग | लाल |
पंखुडिया | 4 गहरे लाल रंग की |
तत्व | पृथ्वी |
बीज मंत्र . | लं |
स्वाधिष्ठान चक्र
स्वाधिष्ठान चक्र का अर्थ स्वयं का निवास स्थान। यह चक्र मुलाधर से दो अंगुल उपर है और प्राणशक्ति के जागरण के लिये उतरदायी है। इस चक्र में 6 पंखुडिया वाला कमल का फूल है जिसका रंग सिंदूरी है इसका बीज मंत्र वं है।
रंग | सिंदूरी |
पंखुडिया | 6 सिंदूरी रंग की |
तत्व | |
बीज मंत्र . | वं |
इस चक्र में ही सभी प्रकार की स्मृतियां और संस्कार संचित अवस्था में रहती है। जो मानव अस्तित्व के आधार स्तम्भ माना जाता है। जिसके कारण प्राण के मार्ग मे बाधा आ जाती है और जिसके फलस्वरूप प्राण इस स्वाधिष्ठान के उर्जा क्षेत्र पार नही कर पाता है
स्वाधिष्ठान चक्र ही स्वाद, अनुभुति, नीद के लिये उतरदायी होता है। यदि किसी व्यक्ति का स्वादिष्ठान चक्र सक्रिय हो जाये तो उस व्यक्ति की भुख और यौन सुख की लालसा बढ जाती है । जिसके फलस्वरूप प्राण उर्जा में एक बाधा उप्पन हो जाती है।
मणिपुर चक्र
मणिपुर चक्र को मणियो का नगर नामं से भी जाना जाता है। मणिपुर शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है रत्नो की पुरी । यह चक्र नाभि के ठीक पीछे रीडड की की हडडी में स्थित है क्योकि यह प्राण का भण्डार होता है। यह चक्र जीवनी शक्ति , गतिशीलता, इच्छा शक्ति उत्पादन परिरक्षण से सम्मबन्धित है। इसकी तुलना आग के गोले से की जाती है इसके बिना जीवन सम्भव ही नही है। इस चक्र में 10 पंखुडिया वाला कमल का फूल है जिसका रंग पिला हैै इसका बीज मंत्र रं है।
रंग | पीला |
पंखुडिया | 10 पीली |
तत्व | अग्नि |
बीज मंत्र . | रं |
अनाहत चक्र
अनाहत हदय का केन्द्र स्थान है यह मानव के शुद्ध विचारो, भावनाओ को जागृत करता है। अनाहत चक्र से एक नाद निकलता है जिसे अनाहत नाद (ध्वनि) कहते है। यह नाद केवल ध्यान की उच्च अवस्था में सुनाई देता है। इसकी अनुभुति केवल विशुद्ध चेतन से युक्त व्यक्ति कर सकता है। अनहत चक्र में 12 पुंखुडियां होती है जिनका रंग हरा होता है। इसका बीज मंत्र “यं” है। यह चक्र वायु तत्व से सम्बन्धित है।
रंग | हरा |
पंखुडिया | 12 |
तत्व | वायु |
बीज मंत्र . | यं |
जिस व्यक्ति का भी यह चक्र विकसित अवस्था में होता है। वह व्यक्ति अन्य प्राणियो के प्रति सवेदनशील होता है। स्पार्शानुभूति से भी यह चक्र सम्बन्धित होता है। यदि यह जाग्रत हो जाता है तो किसी दूसरे प्राणी को स्पर्श या विकिरण के माध्यम सें ठीक किया जा सकता है।
हदय में ही प्रेम स्थित होता है इसी स्थान से भक्ति की भावनाऔ का विकास होता है। भावनातत्क आसक्ति की धोतक विष्णु ग्रन्थि भी यही होती है। इस ग्रन्थि के खुल जाने पर व्यक्ति के भीतर से स्वार्थ और अंहकार पूर्ण से मुक्त हो जाता है । उसे मानसिक व उसे भावनात्मक शांति मिल जाती है।
विशुद्धि चक
विशुद्धि चक आकाश तत्व से सम्बन्धित है और यह गले के पीछे मेरूदण्ड में स्थित होता है और थायरांयड ग्रन्थि से सम्बन्धित है। इसमें बैगनी रंग की 16 पुखुडियां होती है। इसका बीज मंत्र हं है।
रोग इस चक्र के जाग्रत होने पर दूर हो जाते है। जीवनीशक्ति औैर स्वास्थ्य की प्राप्ति होता है। व्यक्ति फिर से जवान होने लगता है। यह चक्र सक्रिय होने पर सभी प्रकार की अनुभूतियों का अवशोषण कर उन्हे आनन्द की अवस्था में परिणत कर देता है।
रंग | बैगनी |
पंखुडिया | 16 |
तत्व | आकाश |
बीज मंत्र . | हं |
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इस चक्र का सम्बन्ध विज्ञानमय कोश से है। यही पर उच्च ही उच्च मानसिक विकास की प्रक्रिया शुरू होती है। ध्वनि तंरगो को ग्रहण करने का यह केन्द्र है। पास हो या दूर के विचारो को सर्वर की तरह गहण करता है। इस चक्र के जाग्रत होने पर कानो के साथ साथ मन के द्वारा भी सुनने की क्षमता तीव्र हो जाती है।
आज्ञा चक्र
आज्ञा चक्र विज्ञानमय कोश से सम्बन्धित है। यह मेरूदण्ड के शीर्ष पर मध्य मस्तिष्क में स्थित है। और पिनियल ग्रंथि के समरूप होता है। इसको कही नामो से भी जाना जाता है जैसे तीसरी आंख, ज्ञानच़क्षु, त्रिवेणी, गुरू चक्र औैर शिवनेत्र।
इसका तत्व मन है। इसी बिंदू पर मन स्थूल से सूक्ष्म में और बहिर्मुखी से अंतरमुखी रूप में परिवर्तित हो जाता है। मन स्थिर व शक्तिशाली हो जाता है। दो दल वाला रजत कमल आज्ञा चक्र्र का प्रतीक है।
रंग | नीला |
पंखुडिया | 2 |
तत्व | |
बीज मंत्र | ॐ |
सहस्त्रार चक्र
सहस्त्रार चक्र एक उच्च चेतना का केंद्र है यह चक्र सिर के शिर्ष पर स्थित होता है। साधरणतः यह चक्र नही है क्योकि यह चित के क्षेत्र परे है। यह उच्चतम चेतना का वास स्थान है। सहस्त्रार मनुष्य के विकास की समग्रता एवं पूर्णता का सर्वोच्च शिखर है।
सहस्त्रार चक्र को हजार पंखुडियो वाले दीप्तिमान कमल के रूप में दर्शाया गया है। इसके कमलदलो पर बावन बीज मंत्रो को बीस बार अंकित किया गया है। सहस्त्रार में ही शिव का शक्ति से, चेतना का पदार्थ एवं उर्जा से और जीवात्मा का परमात्मा से संयोग होता है।
रंग | |
पंखुडिया | 1000 |
तत्व | |
बीज मंत्र |
जब कुण्डली का जागरण होता है तो विभिन्न चक्रो का उध्र्वगमन करते हुये सहस्त्रार तक जाती है और परम स्त्रोत में विलीन हो जाती है। जो उसका उदगम स्थल है। और यही योग परम लक्ष्य भी है। इस अवस्था को प्राप्त करने वाला योगी परम ज्ञान एवं परम आनन्द करते हुये जन्म मृत्यु के परे चला जाता है।