शोध (अनुसंधान) समस्या का अर्थ और स्वरूप

शोध (अनुसंधान) समस्या का अर्थ और स्वरूप :-
दैनिक जीवन में मनुष्य अनेक समस्याओं का सामना करता रहता है जिसमें कुछ समस्याएं ऐसी होती है जिनका समाधान करने के लिए अपने व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन करना पड़ता है । हमारे सामने आर्थिक समस्या हो सकती है । परंतु वैज्ञानिक अनुसंधान कब प्रारंभ होता है । जब हमें कुछ ज्ञान प्राप्त होता है । उससे ज्ञान के आधार पर हम केवल यह कह सकते हैं कि वहां पर कोई ऐसी वस्तु है जिसका हमें ज्ञान नहीं है अर्थात हमारा ज्ञान अधूरा है । किसी भी वैज्ञानिक अनुसंधान में समस्या उसका महत्वपूर्ण अंग है । समस्या इसका प्रथम पद है किसी भी अनुसंधान को प्रारंभ करने के लिए अनुसंधानकर्ता को उस विषय की समस्या का चुनाव करना होता है । किसी भी वैज्ञानिक अनुसंधान को संचालित करने में समस्या के चयन की एक विकट समस्या रहती है।

समस्या के स्वरूप से ठीक ढंग से परिचित होने पर सोदिया अनुसंधान का कार्य शुभम हो जाता है । प्राय यह कहा जाता है कि सुप्रस्तुत समस्या का आधा समाधान पहले ही हो जाता है अनुसंधानकर्ता को समस्या के स्वरूप से परिचित होने के लिए कुछ सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक बातों की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए । मनुष्य समाज में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के साधनों को अपनाता है । जब उसे आवश्यकता की पूर्ति हेतु साधन उपलब्ध नहीं हो पाते तो उसके समक्ष एक समस्या उत्पन्न हो जाती है। अतः इससे स्पष्ट है कि अपनी आवश्यकता की पूर्ति में उपस्थित बाधा ही समस्या है जैसे- यह बाधा दूर हो जाती है और समस्या वही समाप्त हो जाती है।

आवश्यकता +साधन उपलब्ध नहीं= समस्या
आवश्यकता +साधन= समस्या नहीं
किसी भी समस्या के लिए आवश्यकता और साधन दोनों महत्वपूर्ण है समस्या की गहनता आवश्यकता की प्रबलता पर निर्भर होती है आवश्यकता जितनी प्रबल होगी और उसमें जितना तीव्र अवरोध होगा समस्या उतनी ही गहन होगी।

शोध समस्या की परिभाषा (डेफिनेशन ऑफ प्रॉब्लम)


टाउनसेंड के अनुसार-
समस्या एक ऐसा प्रश्नवाचक कथन है कि जिसमें एक समस्या के समाधान को प्रस्तावित किया जाता है।

करलीगर के अनुसार- समस्या एक ऐसा प्रश्नवाचक कथन या वाक्य है जिससे यह जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है कि दो या दो से अधिक चरों में किस प्रकार का संबंध पाया जाता है।

मैकगुइगन के अनुसार- यदि एक प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता तब वह वास्तव में प्रश्न ही नहीं है । विज्ञान में केवल समाधान योग्य समस्याओं के ऊपर ही अन्वेषण किए जाते हैं । एक समाधान योग्य समस्या के स्वरूप समस्याओं के ऊपर ही अन्वेषण किए जाते हैं । एक समाधान योग्य समस्या के स्वरूप के विषय में मैकगुइगन ने लिखा है एक समाधान योग्य समस्या एक ऐसा प्रश्न  प्रश्न होता है जिसका उत्तर एक व्यक्ति की सामान्य क्षमताओं के आधार पर दिया जा सकता है।

मैकगुइगन के अनुसार– एक समस्या प्राय निम्नलिखित तीन स्थितियों में व्यक्त होती है-।

  1. ज्ञान में अवरोध-

यह स्थिति प्राय उस समय आती है जब एक घटना से संबंधित हमारा ज्ञान भंडार पर्याप्त नहीं होता यदि किसी विषय से संबंधित जानकारी का अभाव होता है तो वहां समस्या उत्पन्न होती है उस समय हम यह महसूस करते हैं कि हम इस विषय में इतना तो जानते हैं कि और कुछ ऐसा भी जिसको हम नहीं जानते उस विषय की ज्ञान की कमी अनुसंधान प्रश्न के रूप में भर्ती है ।
उदाहरण- यदि कोई ग्रुप प्राकृतिक चिकित्सा की सुविधा को अपने क्षेत्र में उपलब्ध कराना चाहता है तो प्रश्न यह उठता है कि किस प्रकार की चिकित्सा की धारणा की जाए प्रकृतिक चिकित्सा की बहुत सी विधियों में से कौन सी विधि प्रभावशाली होगी इस संबंध में कोई भी वैकल्पिक अध्ययन नहीं हुआ जो इसका उपयुक्त उत्तर दे सके अर्थात यह ज्ञान में अधूरापन स्पष्ट करता है।

2.विरोधी परिणाम-

यह स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब एक तथ्य के संबंध में पहले किए गए दो अलग-अलग अनुसंधान उसे दो अलग-अलग विपरीत परिणाम देखने में आते हैं अनेक अनुसंधान विषयों पर अध्ययन करने पर पता चलता है कि एक ही प्रश्न के विभिन्न अनुसंधानकर्ता द्वारा परस्पर विरोधी निष्कर्ष दिए जाते हैं तो उनकी मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कौन सा निष्कर्ष सही है ।

उदाहरण- जब कोई व्यक्ति किसी क्रिया को सीखता है तो सीखने के प्रारंभिक प्रयासों में विश्राम देना अधिक लाभकारी है या बाद के प्रयासों में यदि किसी विशेष सामग्री के सीखने में 20 प्रयास देना है तो प्रथम 10 प्रयासों के बाद विश्राम देना लाभकारी होगा कि बाद के 10 प्रयासों के बाद इस समस्या पर तीन प्रयोग किए गए जिनमें परस्पर विरोधी प्राप्त हुए प्रथम प्रयोग से ज्ञात हुआ कि क्रमशः विश्राम देना अधिक लाभदायक है दूसरे प्रयोग में प्रदर्शित किया गया कि विश्राम काल को घटाने में अच्छा सीखना पड़ता है तथा तीसरे प्रयोग का परिणाम के या की तीसरे क्रमशः से विश्राम काल में वृद्धि या कमी करने पर सीखने पर लगभग समान प्रभाव पड़ता है इस प्रकार परस्पर विरोधी परिणाम वाले अध्ययन में अनुसंधानकर्ता इस विरोधाभास कारकों को जानने संबंधी शोध करता है ।

3. एक तथ्य की व्याख्या-

जब हमारे सामने ऐसे तथ्य हो जिसके वर्तमान के ज्ञान के आधार पर व्याख्या नहीं की जा सकती है तो यह स्थिति व्याख्या की खोज मैं समस्या उत्पन्न करती है ।
विज्ञान का लक्ष्य सिद्धांत का प्रतिपादन करना है जब अनुभव से ऐसे तथ्य प्राप्त होते हैं जिनकी उस क्षेत्र से संबंधित सिद्धांतों से व्याख्या की जा सके तो वह स्थिति नवीन अध्ययनों को जन्म देती है ।

शोध समस्या उत्पत्ति के स्रोत-

कौन सा व्यक्ति किसी समस्या को अनुसंधान का विषय बनाएगा इस संबंध में निश्चित कथन नहीं दिया जा सकता फिर भी जिस विषय क्षेत्र से संबंधित भाव अनुसंधान समस्या के रूप में प्रकट होता है पहले यह समस्या धुंधले रूप में व्यापकता लिए रहती है फिर उसका स्वरूप स्पष्ट हो जाता है ।

1. जहोदा के अनुसार- समस्या उत्पत्ति के स्रोत यह समस्या ऐसे विषय से निकल सकती है जिसके विषय में कम जानकारी है अथवा जिस के संबंध में जानकारी तो है परंतु स्पष्ट जानकारी की आवश्यकता है ।

2. चूहों पर एक अध्ययन मनोविश्लेषण आदि सिद्धांत के कथन को जांचने के लिए किया कि शैशव काल का वशीकरण प्रौढ़ व्यक्ति को प्रभावित करता है इसी प्रकार पद्धति जनित दोषों को परखने के आधार पर समस्या उत्पन्न हो सकती है ।

शोध समस्या का चुनाव-

अनुसंधानकर्ता के लिए एक उपयुक्त समस्या का चयन करना एक कठिन कार्य होता है तथा जिज्ञासु अनुसंधान के करता के सामने अनुसंधान के अनेक समस्याएं हो सकती हैं परंतु सभी समस्याओं का समाधान करना अनुसंधानकर्ता के लिए संभव नहीं अतः अनुसंधानकर्ता को इन समस्याओं में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है समस्या का चुनाव करते समय कुछ निम्नलिखित बातों या सिद्धांतों का ध्यान रखना चाहिए ।

1.शोधकर्ता की रूचि ।
2. शोधकर्ता की अभिरुचि अर्थात अभियोग्यता एवं क्षमता होना नितांत आवश्यक है ।
3. समस्या व्यावहारिक तथा सैद्धांतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तथा उपयोगी होने चाहिए ।
4. समस्या में अनुसंधानकर्ता की पर्याप्त रुचि तथा अभियोग्यता का होना नितांत आवश्यक है ।
5. समस्या ऐसी हो जिस के संबंध में अनुसंधानकर्ता को सुयोग्य मार्गदर्शन सरलता पूर्वक उपलब्ध हो सके ।
6. समस्या का चुनाव मापन सीमा में हो ।
7. समस्या ऐसी हो जिससे सापेक्षिक कम खर्च हो वह समस्या कम ही लगे और जोखिम भी कम हो ।
8. समस्या में नवीनता हो ।
9. अनुसंधान समस्या असाध्य ना हो ।
10. समस्या ऐसी हो जिस के अध्ययन की समाज में प्रतिष्ठा हो तथा जो अन्य दृष्टिकोण से भी उचित है तथा आकर्षक हो ।

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