खेल प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) के सिद्धांत | Principles of Sports Training in Hindi

खेल प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) के सिद्धांत :- खेल प्रशिक्षण को एक ऐसी जटिल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया बताया गया है जिसमें खिलाड़ी के प्रदर्शन के सुधारात्मक ग्राफ को ऊपर उठाया जा सकता है खेल प्रशिक्षण का स्वरूप बड़ा विस्तृत है इनमें विभिन्न खेल विज्ञानों का मिश्रण है जैसे शरीर रचना विज्ञान चिकित्सा शास्त्र खेल मनोविज्ञान आदि विषय स्वता ही समाहित हो जाती है क्योंकि इन विषयों की जानकारी के बिना खेल प्रशिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता खेल प्रशिक्षण की विधियों से वांछित लक्ष्य की प्राप्ति तभी हो सकती है जब प्रशिक्षण योजनाबद्ध और नियंत्रित हो ।

मार्टिन महोदय के अनुसार खेल प्रशिक्षण एक योजनाबद्ध एवं नियंत्रित प्रक्रिया है जिसके माध्यम से लक्ष्यों की प्राप्ति होती है और खेल गामक प्रदर्शन में परिवर्तन का पता चलता है कार्य करने की योग्यता का ज्ञान होता है और व्यवहार आदि तत्वों के ज्ञान का पता चलता है मटन महोदय के अनुसार गामक प्रदर्शन में परिवर्तन का पता चलने को भी खिलाड़ी के विकासात्मक प्रक्रिया माना जा सकता है इससे निरीक्षण एवं मूल्यांकन से कमजोर पहलुओं का पता चलता है जिससे प्रदर्शन में सुधार की गुंजाइश अधिक हो जाती है।

अतः कहा जा सकता है कि खेल प्रशिक्षण एक ऐसी शैक्षणिक प्रक्रिया है जो कुशल एवं अनुभवी आदि शिक्षक द्वारा विभिन्न वैज्ञानिक विधियों को आधार बनाकर पूरी की जाती है जिसका एकमात्र उद्देश्य खिलाड़ियों के प्रदर्शन में उच्चता लाना है । खिलाड़ियों के प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए खेल प्रशिक्षण की भूमिका महत्वपूर्ण है । प्रशिक्षक की प्रशिक्षण प्रणाली एवं कला से ही खिलाड़ी अपने खेल की क्षमता का विकास करता है इसीलिए खेल प्रशिक्षक पूरी लगन से वैज्ञानिक तरीकों को अपनाते हुए प्रशिक्षण देता है । खिलाड़ियों में विभिन्न खेल कौशलों में प्रवीणता लाने के लिए खेल प्रशिक्षण के कुछ मूलभूत सिद्धांत अनिवार्य है । वैज्ञानिकों ने इन सिद्धांतों की विवेचना अलग अलग ढंग से की है उदाहरण के लिए

प्रशिक्षण का दर्शन

प्रशिक्षण के दर्शन को विस्तार से जानने से पहले हमें दर्शन के विषय में जान लेना आवश्यक है । दर्शन अंग्रेजी भाषा के फिलॉसफी शब्द का हिंदी रूपांतरण है जिसका अर्थ है ज्ञान के प्रति अनुराग या प्रेम अर्थात बच्चों को जानने से पहले उसके गुण रहस्य की तह मैं पहुंचकर दार्शनिक ढंग से अवलोकन करना ही दर्शन है।

प्रशिक्षण भी वर्तमान समय में एक ऐसा व्यवसाय बन चुका है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति आने से पहले अपने कुछ उद्देश्य रखता है। उसकी प्रशिक्षण के बारे में एक सोच एक अनुभव होता है तथा उनके इन्हीं गुणों का प्रशिक्षण पर प्रभाव पड़ना जरूरी है । प्रशिक्षक अपने अधीनस्थ खिलाड़ियों से किस तरह की उपलब्धि प्राप्त करना चाहता है । इन सब उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रशिक्षक के पास अपना एक स्पष्ट विचार व निश्चित चिंतन होना चाहिए जब एक प्रशिक्षक में यह गुण आ जाए तब वह एक सफल प्रशिक्षक के रूप में स्वयं को सफल कर लेता है । इसके लिए निरंतर वर्षों तक अभ्यास विभिन्न शारीरिक व्यायाम एवं प्रशिक्षण विधियों का प्रयोग करना पड़ता है।

शरीर क्रिया विज्ञान की दृष्टि से शरीर के अंग को विभिन्न खेल कौशलों के अनुरूप दक्ष करना पड़ता है तथा पोषण एवं आहार द्वारा शक्ति एवं ऊर्जा का संचय किया जाता है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि किसी भी प्रतियोगिता में भाग लेने से जिस अभ्यास प्रक्रिया व्यायाम या साधनों द्वारा कार्य करने या वर्धा में भाग लेने के लिए शारीरिक एवं मानसिक तैयारी की जाती है इससे शरीर वार्मिंग अप हो जाता है और इसी वार्म अप पूर्ण रूप से प्रयोग करने पर समय के साथ जो परिपक्वता आती है उसे अनुकूलन कहते हैं । किसी कार्य व्यायाम को लगातार करने से शरीर की मांसपेशियां सक्रिय हो जाती है।

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