मूल्यपरक शिक्षा | Value Education in Hindi

मूल्यपरक शिक्षा :- मूल्यपरक शिक्षा की अवधारणा जीवन में सफलता का आधार शिक्षा पर निहित है। समय के साथ साथ शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते रहते हैं । स्वतंत्रता के बाद भारत में शिक्षा को सामाजिकरण के लिए सशक्त साधन मानते हुए, इनके द्वारा व्यक्तित्व व नागरिकता के गुणों को विकसित करने का प्रयत्न किया गया है ।

आजकल हम शिक्षा को व्यवसाय युक्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं । उत्तम सांस्कृतिक विकास के संरक्षण व स्थानांतरण पर ही ध्यान दिया जा रहा है। शिक्षा द्वारा विकल्पों में से उत्तम को चुनने की कुशलता विकसित होती है । आज हम विकल्प चुना करते हैं । परंतु वास्तव में ऐसा नहीं होना चाहिए । पूरी शिक्षा द्वारा विकसित किए जाने वाले मूल्यों के बारे में हमारे धर्माचार्य शिक्षाविदों मनोवैज्ञानिकों शिक्षकों व अभिभावकों में आज तक एकमत नहीं हो पाया है । दुर्भाग्यवश हम अभी तक मूल्यों की स्पष्ट व सर्वमान्य परिभाषा निश्चित नहीं कर पाए हैं।

मूल्य का अर्थ –

मूल्य किसी वस्तु का भाव स्थिति का वह गुण है जो समालोचन व वरीयता को प्रकट करता है । यह एक आदर्श शुभा इच्छा है जिसे पूरा करने के लिए व्यक्ति जीवन जीने की चाह रखता है तथा अजीवन प्रयास करता है । मूल्य पद का अर्थ है समाज या दर्शनशास्त्र में किसी भी तरह स्पष्ट नहीं है फिर भी कुछ विद्वानों ने स्पष्ट किया है । जैसे

मैक मिलर के अनुसार – मूल्य मानव अस्तित्व में किसी महत्वपूर्ण चीज का प्रतिनिधित्व करते हैं । मनुष्य जीवन पर्यंत सीखता रहता है तथा उसके अनुभवों में निरंतर अभिवृद्धि होती है, जैसे वह अधिकाधिक सीख जाता है तथा परिपक्व हो जाता है । वैसे भी अनुभव प्राप्त करता है । जो उसके व्यवहार को निर्देशित करते हैं । यह निर्देशन जीवन को निर्देश प्रदान करते हैं इन्हें मूल्य कहा जा सकता है।

डोमोबाइल के अनुसार – व्यक्ति जैसे प्रवृत्तियों को धारण करता है और ने सभी प्रवृत्तियों से चरित्र का निर्माण होता है।

प्रोफेसर जे सी सैनेली – मूल्य एक प्रकार का  मानक मापदंड या मान्यता है ।

आधुनिक काल में मूल्यपरक शिक्षा की आवश्यकता-

सामाजिक नैतिक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का खंडन हो रहा है । धर्म कमजोर हो रहा है । शक्ति एवं ज्ञान का दुरुपयोग हो रहा है । राष्ट्र का एक दूसरे के प्रति विश्वास नहीं है । तस्करी, बेईमानी, भ्रष्टाचार, अनुभवी नेता तथा हिंसा का बोलबाला है । ऐसी विकट स्थिति में शिक्षा को मूल्यपरक बनाना अत्यंत आवश्यक है । केवल मूल्यपरक शिक्षा ही व्यक्तित्व सामाजिक हित प्रेम शांति सद्भाव तथा विवेक को विकसित कर सकती है ।

वर्तमान युग में व्याप्त राजनीतिक तनाव का कारण यही है कि ज्ञान की तो वृद्धि हो रही है । परंतु नैतिकता पिछड़ रही है । सत्य, न्याय एवं अहिंसा ही ऐसे नैतिक मूल्य हैं जो मानवता के गांव पर मरहम का कार्य कर सकते हैं । मूल्यपरक उन्मुख शिक्षा ही मनुष्य को प्रेरित कर सकती है कि वह मानवता की अनुशक्ति का प्रयोग मानवता के विनाश के लिए नहीं बल्कि भलाई के लिए करें । सामाजिक नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का विकास एवं प्रचार शिक्षा ही काम है इन्हीं मूल्यों में जीवन को संगठित करने की शक्ति निहित है।

मूल्य शिक्षा का उद्देश्य

  1. नैतिक विकास
  2. सांस्कृतिक विकास
  3. उदार दृष्टिकोण का विकास
  4. लोकतांत्रिक तक गुणों का विकास
  5. मूल प्रकृति यों का विकास
  6. सहयोग पूर्ण जीवन
  7. मानवता की बुनियाद
  8. आत्मा का श्रृंगार
  9. समरसता की स्थापना

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