प्राणायाम क्या हैं, इसके प्रकार व मुख्य जानकारी | Pranayam Kya Hai in Hindi | Pranayam ke Prakar Hindi

प्राणायाम क्या है – Pranayama in Hindi : –  प्राणायाम 2 शब्दों से मिलकर बना है प्राण + आयाम।

प्राण → जीवनी शक्ति

आयाम → विस्तार (प्राण का विस्तार करना)

अर्थात प्राणायाम वह प्रक्रिया है जिसमे प्राणशक्ति का नियंत्रण और विस्तार किया जाता है। अर्थात प्राणों का विस्तार करना ही प्राणायाम कहलाता है।

प्राण क्या है– शरीर को जीवित रखने वाली शक्ति का नाम प्राण है। प्राणों के कारण ही संसार में सब कुछ विद्यमान है। प्राण नहीं होता है तो कही जीवन संभव नहीं होता।

पतंजलि के अनुसार प्रणायाम की परिभाषा –

               “तस्मिन् सति श्वाश प्रश्वाशयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः ” अर्थात – श्वाश और परश्वाश की गति का स्थिर (सुदृढ़) हो जाना ही प्राणायाम कहलाता है।

सिद्ध सिद्धात पद्धति से गोरक्षनाथ जी के अनुसार प्रणायाम की परिभाषा

               “प्राणायाम इति प्राणस्य स्थिरता”

अर्थात प्राण की स्थिरता को प्राणायाम कहा गया है।

प्राणायाम का माध्यम श्वास है। इसके तीन श्वसन चरण है। बाह्य वृत्ति, स्तंभ वृत्ति अभ्यांतर वृत्ति।

1 – बाह्य वृत्ति –  रेचक (प्रश्वाश) (श्वास छोड़ना) Exhale

2 – स्तंभ वृत्ति – कुम्भक (श्वाश प्रश्वाश दोनों की गति को रोककर रखना) Holding

3 – अभ्यांतर वृत्ति – श्वाश (पूरक) (सांस लेना) inhale

प्राणायाम के लिए श्वाश कैसे ले – श्वाश प्रश्वाश (Inhale Exhale ) को इतने धीरे मंद गति से ले की समीप बैठे व्यक्ति को श्वाश का शब्द ना सुनाई दे। यानी धीमी, लंबी और गहरी श्वाश ले।

प्राणायाम के अभ्यास से क्या होता है – प्राणायाम का अभ्यास करने से चित्त स्थिर होता है। चित्त में स्वभावतः समस्त ज्ञान भरा है। वह सत्य पदार्थ द्वारा निर्मित है। परंतु रज और तम से ढका है । इस के द्वारा चित का आवरण हट जाता है। अभ्यास से प्राण वायु को बार-बार बाहर निकालने और रोकने के अभ्यास से चित निर्मल होता जाता है।

प्राणायाम में कुम्भक अति आवश्यक है। कुंभक को बढाने के लिए पूरक और रेचक की किया जाता है। कुम्भक के कारण ही ऑक्सीजन और कार्बनडाई ऑक्साइड का आदान प्रदान के लिए अधिक समय मिलता है। मन के साथ श्वाश का अधिक नजदीक का सम्पर्क है। इसलिए श्वास से हम मन और शरीर के कही आयामों को प्रभावित कर सकते है।

हमारे शरीर में लगभग ७२००० हजार नाड़ीयाँ और ६ चक्र पाए जाते  है। प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से प्राण स्वतंत्र रूप से चलने लगता है और अधिक ऊर्जा मुक्त होने लगती है साधक को अनेक अनुभुतियां होने लगती है।   

प्राणायाम के अभ्यास से योग साधक का शरीर और मन स्थिर होता है। आयु में वृद्धि होती है।  रक्त की शुद्धि होती है। हमारे फेफड़े ताकतवर होते हैं इनकी कार्य क्षमता बढ़ती है। कफ संबंधी रोग दूर होते है । नियमित अभ्यास से शरीर हल्का, बलवान और ऊर्जावान बनता है। सभी pranayama के अलग-अलग लाभ होते हैं।

जैसे कपालभाति से आपके कपाल की शुद्धि होती है औऱ मोटापा कम होता है । आक्सीजन से रक्त शुद्धि होती है। भस्त्रिका कफ संबंधित रोगों को दूर करता है। शरीर को गर्मी प्रदान करता है। भ्रामरी मन को शांत करता है। आपकी स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। उज्जायी से गले की समस्त रोग दूर होते हैं और थायराइड में लाभकारी है। शीतली भूख प्यास को नियमित करता है और शीतलता प्रदान करता है।

प्राणयाम के प्रकारमुख्य रूप से प्राणायाम 8 प्रकार के होते है।

प्राणायाम के लिए बैठने का तरीका – किसी आरामदायक आसन में बैठ जाये यदि पदमासन और सिद्धासन/सिद्धयोनी लगे तो उतम है । यदि आपकी कमर सीधी नहीं है तो लकड़ी की ब्रिक (ईट) या बोस्टर (गोल तकिया) के ऊपर बैठे । कमर और गर्दन सीधी रखे ।

कपालभाती – यह कपाल की शुद्धी करता है  । एक लंबी गहरी सांस ले । उदर यानि पेट की पेशियों से जोर जोर से बलपूर्वक सांस छोड़े । अत्यधिक जोर से ना करे  । केवल रेचक यानि सांस छोडनी है  । ऐसा लगभग ५० से १०० बार करे ।  

भस्त्रिका – भस्त्रिका यानी जोर जोर से पूरक और रेचक करना है  । अर्थात तेजी से सांस ले और छोड़े । कंधे ना हिले । केवल डायफ्राम  और फेफड़ो से साँस ले ।  

नाड़ी शोधन – अपनी बायीं नाक को अपने दाहिने अंगूठे से बंद करे और बायीं नाक से साँस से । सांस रोककर रखे और फिर बायीं नाक को बंध करे और दहिनी नाक से सांस छोदेP  । फिर दाई नाक से साँस ले और सांस रोककर रखे और बायीं नाक से छोड़ दे  । यह एक चक्र है  । कम से कम १२ चक्र रोज करे  ।  

भ्रामरी – किसी भी आराम दायक आसन में बैठ जाए, पद्मासन, सिद्धासन बैठ सके तो उत्तम है। कमर गर्दन बिलकुल सीधे रहे । इसके बाद अपनी तर्जनी अंगुली से अपने कानों को बंद कर दे और मुँह को बंद रखते हुए एक लम्बी गहरी साँस लेकर साँस छोड़ते हुए म का उच्चारण करे। इसी प्रकार अपनी क्षमता के अनुसार ५ से १० बार करे ।

उज्जायी –

शीतली –

शीतकारी –

मूर्छा –

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