बात सन् 2019 की है मैं और मेरे एक मित्र काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिये देहरादून से वाराणसी जा रहे थे। रेलगाड़ी का लम्बा सफर होने से कई लोग बीच में मिलते रहे और कईयों से बातचीत भी हुई। वापस आते हुए लखनऊ के आस-पास के जंक्सन से एक व्यक्ति बैठे थे जिन्होंने अपना नाम रमेश बताया। उन्होंने बताया कि वह हरिद्वार जा रहे हैं और हरिद्वार आने ही वाला था।
आपस में बात करते हुए समय भी पास होता जाता और आध्यात्मिक स्थान से आ रहे थे तो इसलिए अध्यात्म की चर्चा भी काफी हुई पर बात ही बात पर हम सब अनेकों संदर्भो पर भी चर्चा कर रहे थे और इसी बात पर रमेश के साथ हुई एक घटना जो उन्होंने हमें बताई मैं आपके सामने रख रहा हूँ।
रमेश लखनऊ में एक किराये के कमरे में रहते थे और उनके पडो़स में एक बुजुर्ग व्यक्ति भी उनके पड़ोसी थे। पड़ोसी बुजर्ग किसी कम्पनी से रिटायर्ड थे और उनकी अच्छी पैंसन योजना थी तथा पैंसों की कोई कमी न थी। परन्तु बुढ़ापा और अकेले खाना-पीना स्वास्थ्य में कमी होने के कारण वह अस्वस्थ रहते थे। रमेश की मित्रता उनसे हो गई थी। आस-पड़ोस में कोई रहता है तो मित्रता हो ही जाती है। बुजुर्ग किताबों का भण्डार अपने कमरे में रखते थे और उनको पड़ते और रमेश को भी पड़ने के लिये देते।
इस प्रकार जब भी रमेश कोई भोज्य पदार्थ बनाता उन्हें अवश्य सम्मिलित करता था और कोई भी सेवा होती तो तत्पर रहता था । और कई बार ऐसा अवसर आया जब बुजुर्ग रमेश से चाय, बीड़ी, माचिस, ब्रेड, आदि बाजार का सामान भी बाजार से मंगाते और रमेश भी हंसी खुशी ला देते। कई बार बुजुर्ग बीमार पड़ते तो उनके लिये खिचड़ी बनाकर देना और दवाई उपलब्ध कराना कोई कार्य पड़ने पर उन्हें वहां ले जाना।
रमेश के पास एक पुराना खटारा स्कुटर था । उसमें वह उनका जो भी कार्य होता उन्हें वहां ले जाते। इस प्रकार दोनों में एक अच्छी मित्रता हो गई। एक बार बुजुर्ग ने अपने दस्तावेजों का थैला खो दिया (आधार कार्ड आदि) तो रमेश ने दूसरे मित्र की बाईक मांगकर उसकी खोज की और उसे ढूँड निकाला। रमेश सोचते कि बुजुर्ग हैं कौन इनकी सहायता करेगा मेरे पास अवसर है तो जितना हो सकता है मुझे कर देना चाहिए।
एक दिन बुजर्ग बाजार से एक नया थैला खरीद कर लाये और रमेश को कहा कि बेटा मेरे कमरे में जगह नहीं है तो इस थैले को यहां बाहर रख देता हूँ सायद बुजुर्ग के कमरे में इतनी जगह न थी। वह थैला सायद वो किसी को गिफ्ट करने के लिये लेकर आये थे और वो एक बड़ा थैला था तो रमेश ने कहा कि बाहर क्यों? मेरे कमरे में रख दीजिए जब आवश्यकता हो तो निकाल लेना वैसे भी मैं यहीं हूँ कहीं बाहर नहीं जा रहा। ठीक है कहकर बुजुर्ग ने थैला रमेश के कमरे में रख दिया। उसी रात रमेश के कुछ मित्र वहां रहने के लिये आये और खाना-पीना खाकर बैठकर गप्पे मारने लगे तभी उनकी नजर उस थेले पर पड़ी।
अरे रमेश बाबू कहीं बाहर जा रहे हो या सादी की खरीदारी करनी है, इतना बड़ा थैला क्यों लेकर आये हो। भाई अरे हाँ दूसरे मित्र ने भी ठहाके लगाकर कहा, लाओ दिखाओ जरा देखते हैं कि कैसा थैला है। रमेश अ….रे मे….रा न…इतना कहते कि मित्रों ने थैला खोल दिया और देखने लगे। और देखते हैं कि उसमें तो काफी सारी चाकलेट हैं, अरे वाह खाने के बाद मीठे का प्रबन्ध भी किये हो रमेश भाई और गिनने लगे एक…दो….पाँच….सात इसमें तो सात चॉकलेट हैं और दूसरे ने एक चॉकलेट निकाल कर जैसे ही फाड़ने वाला था तो रमेश ने कहा रुको ये थैला मेरा नहीं है। सब रमेश की ओर देखने लगे कि भाई आपके कमरे में थैला है और आप कह रहे हैं कि थैला आपका नहीं है चॉकलेट नहीं खिलाना चाहते तो मत खिलाओ पर झूठ न बोलो, रमेश ने सारी बात बता दी और उन्होंने कहा कि मुझे तो पता भी नहीं था कि इसमें चॉकलेट हैं और बुजुर्ग ने बताया भी नहीं सारे मित्र समझ गये।
रमेश भाई अब ज्यादा नहीं तो एक चॉकलेट तो बनती है वैसे भी रात के दस बज रहे हैं। सुबह एक खरीदकर रख देना। ठीक है सभी ने मिलकर एक चॉकलेट खाई और बांकी थैले में रख दी बातें करते हुए रात्रि विश्राम कर दूसरे प्रातः वे सब चले गये। दूसरे ही दिन रमेश चॉकलेट लेकर आये परन्तु उन्होंने वह चॉकलेट थैले में न रखकर फ्रीज में रख दिया और मन ही मन सोचने लगे कि बुजुर्ग तो मित्र हैं उन्हें सान से बताएंगे कि जो चॉकलेट उन्होंने खाई उसे ठण्डा करके वापस करेंगे।
तीसरे दिन बुजुर्ग ने अपना थैला वहां से उठा लिया क्योंकि दोनों के दरवाजे एक ही बरामदे में थे। इसलिए वे लोग अपने दरवाजे को हमेशा ताला बन्द न करते थे। रमेश कहीं छत पर धूप सेकने के लिए गये थे। तो बुजुर्ग ने रमेश के कमरे से अपना थैला ले लिया परन्तु थैले में तो 6 चॉकलेट ही थे।
बुजुर्ग ने अपना थैला खोलकर देखा तो उसमें 6 चॉकलेट थी और वे रमेश से लड़ने के लिये छत पर चले गये। अरे रमेश तुमने मेरा 200 का नुकसान कर दिया मेरे चॉकलेट खाकर। रमेश ने कहा कि उसने एक चॉकलेट खाई थी और वो उसे लेकर भी आया है। वो फ्रीज में रखी है आपको नीचे जाकर दे दूँगा, नहीं उसमे 8 चॉकलेट थी। नहीं सर उसमें 7 थी और हमने एक खाई है और मैं उसके लिये आपको बताना भी चाहता हूँ और यदि अपको बुरा लगा तो मैं मांफी भी मांगने के लिय तैयार हूँ। और यदि दण्ड स्वरूप आप कुछ चाहते हैं तो वो भी सही परन्तु ये लांछन न लगाये, मैंने हमेशा आपकी मदत की है, मुझे झूठा न बनायें और यदि आप 8 कह रहे हो तो 8 ही होंगे।
सायद मैंने ही कुछ गलत कर दिया पर तब भी 40 की एक तो दो चॉकलेट 80 की हुई आप 200 मत कहिए, मैं अभी आपको एक और चॉकलेट लाकर देता हूँ। रमेश तुरन्त दुकान पर जाकर चॉकलेट ले आये और बुजुर्ग को देने लगे पर बुजुर्ग ने उन चॉकलेट को ऐसे फैंका जैसे कोई कूड़ा भी न फैंकता हो। और कहने लगे कि तुम विश्वास घाती हो, तुमने मेरी अमानत को क्षति पहुँचाई है, किसी का विश्वास नहीं करना चाहिए, किसी की राख को भी छेड़ना नहीं चाहिए, तुमने मेरी चॉकलेट चुराई आदि कठोर बचन कहने लगे।
रमेश स्तब्ध था, फर्स पर टूटी उन चॉकलेट को उठाकर फ्रीज में रख दिया और सोचने लगा कि जिस व्यक्ति के लिये मैंने कभी किसी बात के लिये ना नहीं कहा वह ऐसे विचारों को कह रहा है, अपना पुराना स्कूटर ज्यादा दूर नहीं जा सकता इसलिए किसी और की गाड़ी लेकर मदत की, उसके लिये खाना बनाया, दवाई उपलब्ध कराई विपरीत परिस्थित में साथ दिया वह ऐसा कहा रहा है। गहरे सोच में पड़ गया।
सारा मित्रवत व्यवहार समाप्त हो गया, रिश्ता समाप्त हो गया। रमेश भाई ने माना कि गलती तो उसकी भी है और वह उसके लिये जो भी दण्ड हो स्वीकर करता है । परन्तु सामने वाला व्यक्ति इसके लिये तैयार ही नहीं था। जब इस संसार में जब सभी वस्तुऐं नस्वर हैं तो नहीं चाहिए ऐसे रिश्ते जो 40 रुपये की चॉकलेट को लेकर सिमट सकते हैं। हम उनकी कहानी के उपकार में कुछ कह न पाये।
हरिद्वार पहुँच गये थे । रमेश भाई ने हमसे हाथ मिलाया और कहा कि जीवन रहा तो सायद फिर मिलेंगे और ट्रेन रुकी और वो बाहर की ओर निकल गये।
दोस्तों मैं नहीं जानता यह कहानी कितनी सच्ची है, मैं रमेश भाई की आलोचना भी नहीं करना चाहता क्योंकि जिस भाव से उन्होंने हमें ये बताया था वह काफी गंभीर था। परन्तु मैं इसे एक कहानी के रूप में ही देखना चाहता हूँ वो इसलिए क्योंकि हो सकता है सायद किसी को प्रेरणा दे सके। क्या हम इतने स्वार्थीं हैं कि एक छोटी सी वस्तु से रिश्तों में दरार ला रहे हैं?
क्या परमार्थ और सेवा का यही फल है कि आप किसी को क्षमा नहीं कर सकते? क्या फायदा उन पुस्तकों की लाईब्रेरी बनाने का जिनके विचारों को हम अपने जीवन में लागू ही नहीं कर सकते और उन अनुभवों का जो हमारे जीवन में सायद शान्ति प्रदान कर सकते थे परन्तु सायद ये हमें चाहिए ही नहीं। परन्तु एक बात तो साफ है कि छोटी बातों पर यदि हम बड़ा बतंगड़ न बनायें तो हो सकता है कि हम व्यवहार कुशल बन जायें।
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महोदय जी आपकी कहानी हमेसा प्ररेणा प्रदान करती है ।रमेश भाई की कहानी ने बहुत कुछ सीखा दिया है।किन्तु हो सकता है बुजुर्ग व्यक्ति के अपने ही बच्चों से जीवन में उन्हें हमेसा ही धोखे मिले हों। तो इस बार भी वो उसे विस्वास घात समझ बैठे ।रमेश भाई को भी उन्हें क्षमाँ कर देना चाहिए।।