महेश नाम का एक दर्जी था। वह अपनी पुस्तेनी दुकान पर ही कपडे सिलने का काम करता था। उसका एक बेटा था जिसका नाम रमेश था। रमेश आठवी कक्षा में पढता था। स्कूल की छूटी होने के बाद रमेश कभी कभी पापा की दुकान में जाया करता था। एक दिन रमेश जब पापा की दुकान में गया। उस दिन वह अपने पापा को काम करते हुये बडे ही ध्यान पूर्वक देखने लगा। महेश कपडे को काटकर कैची को टाग के नीचे दबा दिया करता । और कपडे में सुई से तुलपाई करके सुई को टोपी पर फसा देता।
यह सब महेश ने सिलाई के समय काफी बार किया । तभी रमेश के मन में विचार आया और वह इस प्रक्रिया के बारे में सोचने लगा। काफी विचार करने के बाद उसने पापा से पुछ ही लिया। की में आप को काफी देर से काम करते हुये ध्यान पूर्वक देख रहा हूँ। आप जब भी सुई से सिलाई करते है उसके बाद सुई को टोपी से फंसा देते है। और कैची से काम करने के बाद उसे पैर के नीचे रख देते है। आप इन्हे वही क्यो रखते है। आप इन दोनो को कही और भी रख सकते है।
रमेश की बाद को सुनने के बाद उसके पापा मुस्कराये और बोले आज तुमने काफी समझदारी का सवाल किया है। अब में तुम्हे इस प्रक्रिया का वास्तविक अर्थ समझाता हूँ। रमेश देखो यह कैंची काटने के काम आती है अर्थात यह तोडने का काम करती है । और सुई सिलने के काम आती है। इसलिये यह जोडने का कार्य करती है।
सदैव जीवन में एक बात याद रखना। जो काटने का काम करता है उसकी जगह सदैव नीचे होती है। और जो जोडने का काम करता है उसकी जगह सदैव उपर होती है। इस बात का काफी गहराई से समझने के बाद में इस बात को समझ पाया हूं।
इसलिये ही में सुई को उपर और कैची को नीचे रखता हूं। यही जीवन का सार भी है। इसलिये बेटा सदैव इस बात को याद रखना। क्योकि प्रकृति का भी यही नियम है।
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