बात उस समय की है जब महाभारत के युद्ध में पाण्डवो ने विजय प्राप्त कर एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था। यज्ञ के समापन के बाद गरीबो में काफी धन धौलत दान में बांटी गयी । जिसको देखकर सभी इस सब की तारीफ कर रहे थे । पाण्डवो के इस यज्ञ की चर्चा चारो तरफ हो रही थी। सभी कह रहे थे कि ऐसा यज्ञ इससे पहले कभी नही हुआ।
तभी वहां एक नेवला आया जिसका आधा शरीर सोने के रंग का था और बाकी भुरे रंग का। वह नेवला आते ही यज्ञ भूमि की मिटटी में अपने शरीर को रंगडने लगा। कुछ समय बाद वह सभी से कहने लगा। तुम सभी झुठे हो। यह कोई यज्ञ नही है ।
सभी ने उसको कहा तुम कह क्या रहे हो। तुम्हे पता भी है इस यज्ञ में कितना खर्च हुआ है। गरीबो में कितना धन धौलत दोनो हाथो से लुटाया गया है। शायद ही ऐसा यज्ञ इससे पहले पहले किया गया होगा।
फिर कहा मेरी बात सुनो एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपने छोटे से परिवार के साथ रहता था। परिवार में उसकी पत्नी बेटा और बहु थे। वह अत्यत गरीब थे। पूजा पाठ करके उनको जो कुछ प्राप्त होता था उसी से वह अपना भरण पोषण करते थे।
एक बार उस गांव में 4 सालो के लिये अकाल पडा। जिससे ब्राह्मण को काफी कष्टो का सामना करना पडा। एक बार पुरे परिवार को 6 दिनो के लिये उपवास करना पडा। सांतवे दिन ब्राह्मण कही से आटा ले आये। उस आटे की रोट बनायी गयी। खाना चारो लोगो में बांटा गया तभी द्धार पर एक अतिथि आ गये। भारत वर्ष में अतिथि को भगवान ही समझा जाता है। उस समय में तो अतिथि को भगवान से कम न माना जाता था। इस प्रकार बहामण ने अतिथि को कहा आइये आपका स्वागत है। फिर बहामण ने अतिथि को अपने खाने का भाग रख दिया। उसे वह जल्दी ही खा गया। और कहने लगा में 10 दिनो से भुखा हूूं। यह देकर आप ने तो मुझे मार ही डाला है। आप ने तो मेरी भुख और बढा दी है।
तब बहामण की पत्नी ने अपना हिस्सा देने को कहा। लेकिन बहामण ने मना कर दिया । लेकिन जब पत्नी ने जोर किया और कहा की आपकी पत्नी होने के नाते मेरा यह कर्तव्य है। वह भूखा है । फिर पत्नी ने भी अपना हिस्सा दे दिया। लेकिन अतिथि की भूख तब भी खत्म नही हुयी और वह कहने लगा में अब भी भूख के मारे मरे जा रहा हूं।
तब पुत्र ने अपना हिस्सा भी यह कह कर दे दिया कि पुत्र का यह धर्म है कि पिता के कर्तव्यो को पूर्ण करने में उनको सहायता दे ।
लेकिन अतिथि की भूख फिर भी न बुझी और फिर बहु ने अपना कर्तव्य समझकर अपना हिस्सा दे दिया। अब अतिथि की पूर्ति हुयी और उसने उनको आर्शीवाद देकर विदा ली ।
उसी रात को बहामण का पुरा परिवार भूख से मर गया। उस आटे के कुछ कण जमीन पर बिखरे पडे थे।
जिस पर मै लेटा तो मेरा आधा शरीर सुनहले रंग का हो गया। तब से में संसार भर में घूम फिर रहा हूं। और वैसे दूसरे यज्ञ की तलाश कर रहा हूं। जिससे मेंरा पुरा शरीर सुनहले रंग का हो जाये।
लेकिन मुझे आज तक कही वैसा यज्ञ नही मिला। जिस कारण में कह रहा हूं कि यह कोई यज्ञ नही है।
दोस्तो इस कहानी से हमें त्याग की शिक्षा मिलती है। जो एक समय में भारत वर्ष में अपनी पराकाष्ठा पर हुआ करता था। व हमें निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य पथ पर बढने की शिक्षा मिलती है।
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