वस्तुओं से लगाव कहानी | Attachment With Objects Hindi Story

आधुनिक समाज के परिपे्रक्ष्य में देखा जाता है कि कितने प्रकार के संसाधन हमारे पास उपलब्ध हैं और हम उनका किस प्रकार से सदुपयोग कर रहे हैं या दुरुपयोग कर रहे हैं परन्तु यहां पर हम ये चर्चा करने जा रहे हैं कि उनके साथ हमारा कितना लगाव है और किस प्रकार से है।

एक समय की बात है कि किसी नगर में एक सेठ परिवार रहता था। पति-पत्नी और उनका लगभग पांच वर्ष का पुत्र। पति नगर में  हीरा का व्यापारी था। कारोबार दूर-दूर तक फैला हुआ था। इसलिए धन की कोई कमी न थी जो भी वस्तु घर के लिये आवश्यक होती उन सबकी पूर्णता की जाती।

खाने-पीने में भी किसी प्रकार की कंजूसी नहीं की जाती थी। बच्चे के लिये जो भी आवश्यक कपड़े, खिलौने की आवश्यकता होती एक बार कहने पर ही कि मुझे यह वस्तु चाहिए, तुरन्त उपस्थित कर दी जाती। घर में नौकर-चाकर सभी कार्यो की देखरेख करने के लिये उपस्थित रहते थे।

इस प्रकार उन का घर-परिवार खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहा था। परन्तु सेठ अपनी वस्तुओं को लेकर काफी चिंतित रहता था । जो कि आवश्यक भी है कि अपने सामान के प्रति जागरूक रहना चाहिए । परन्तु कभी-कभी सेठ इस बात पर इतना उग्र हो जाता कि वह अपनी पत्नी, पुत्र और नौकरों को मारने लगता इसलिए वे सभी उसकी इस बात से हमेशा परेशान रहते।

बांकी समय सेठ का व्यवहार मित्रवत रहता। परन्तु यदि कोई उसके सामान को हानि पहुंचता तो उसकी सामत आ जाती। इस बात पर कई बार पत्नी के साथ मनमुटाव भी रहता था। पर क्या कर सकते थे सेठ की आशक्ति वस्तुओं पर इतनी थी कि उसकी हद ही न थी।

एक दिन की बात है सेठ शहर से वापिस लौटा और अपने साथ कुछ बहुमूल्य रत्न जड़ित हीरे लेकर घर आया, घर आते ही अपने हीरों का वर्गीकरण करने लगा। तभी उसका पुत्र खेलते-खेलते वहां पहुंच गया और चमचताते हीरों की थैली देखकर उन हीरों से खेलने का मन हुआ।

परन्तु वह जानता था कि पिता के सामने वह इस प्रकार ही हरकत करेगा तो मार ही मिलेगी। वह प्रतिक्षा करने लगा कि कब पिता का ध्यान इधर-उधर जाये और वह एक दो दाने लेकर उससे खेल करेगा । तभी सेठ की पत्नी ने सेठ को आवाज लगाई सेठ अपनी पत्नी को सुनने के लिये वहां से उठा और बच्चे ने तुंरत जितने दाने उसकी जेब में आ सकते थे उठा लिये और खेलने लगा। बच्चा कहां तक अपने संवेगों को रोक पाता।

सेठ वापिस आकर देखता है कि उसका पुत्र उन बहुमूल्य रत्नों से खेल रहा है तो सेठ का पारा चढ़ गया और उसने अपने पुत्र को जोर से एक चांटा जड़ दिया पुत्र सामने स्तम्भ खम्बे से टकराया और नीचे गिर पड़ा। सेठ उन हीरों को समेटने लगा, बेवकूफ कहीं का जानता है कितने लाखों के हैं। एक भी हीरा इधर-उधर हो गया तो लाखों का नुकसान हो जाएगा ये कोई खेलने की वस्तु है।

इतने खिलौने ला रखे हैं खेलने के लिये, एक भी हीरा कहीं कोने में चला जाता, कहीं नाली में चला जाता तो। बेवकूफ कहीं का क्या पता इसने कहीं इधर-उधर तो न कर दिया हाय मेरे हीरे सेठ अपने ही मन में बड़बड़ा रहा था । तभी उसको आभास हुआ कि पुत्र के रोने की आवाज नहीं आ रही है। पीछे मुड़कर देखता है कि खंबे से टकराकर उसके पुत्र का सर फटा पड़ा है सारा खून ही खून फर्स पर गिरा है वह स्तब्ध रह गया ये क्या हो गया।

सारे हीरे हाथ से छूट गये ये मैंने क्या कर दिया। अब क्या करूं मैं इन हीरों का। एक ही पुत्र था। तेरे लिये ही तो ये सब सम्पत्ति जोड़ रहा हूं क्या करुं, अरे सुनती हो ये क्या कर दिया मैंने, मैं हत्यारा हूं। अपने ही पुत्र को मार दिया मैंने। इन हीरों का कोई अर्थ नहीं अब। इस जीवन का कोई अर्थ नहीं अब, हे भगवान! ये क्या हो गया, मुझसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं जो इन सांसारिक वस्तुओं पर आशक्ति लगाकर अपने ही पुत्र को मार दिया, इस प्रकार विलाप करने लगा।

मित्रों ये हम सभी जानते हैं कि अपने सामान की रक्षा करनी चाहिए बच्चे हों चाहे बड़े उनकी गलतियों पर उनको ताड़ना भी आवश्यक है। परन्तु वस्तुओं पर इतनी आशक्ति ठीक नहीं कि उसके चलते हम अपना व दूसरे किसी का बड़ा अहित कर दें। इस संसार में सभी वस्तुएं उपभोग के लिए हैं और उनका विधिवत उपभोग करना चाहिए।

पर उन पर सम्पूर्ण आशक्ति एवं ऊर्जा को लगाना सही नहीं है जिस प्रकार ये शरीर भी भोगमात्र के लिये ही ईश्वर ने हमें दिया है इसलिए इसको सुरक्षित रखना हमारे लिये हितकर है परन्तु सिर्फ अपने स्वार्थ के लिये अपने मात्र को देखना ठीक नहीं । इससे कई प्रश्नों को जन्म मिलता है।

हम देखते हैं कि समाज में छोटी-छोटी बातों पर लोग झगड़ने लगते हैं और उस बात को इतना बड़ा बना देते हैं कि एक-दूसरे को मारने और मरने की प्रक्रिया को अंजाम दे देते हैं। मनुष्य एक विवेकी मनःस्थिति को रखने वाला व्यक्ति है इसलिए आवश्यकता है कि अपने विवके से कार्य करें और यदि आप आशक्ति रहित कर्म करेगे । तो जीवन में आपको कभी कष्ट नहीं होगा और तेजी से आगे बढ़ेगे और यही कर्म योग का सिद्धांत भी है ।   ये अवश्य सोचें कि इन सांसारिक वस्तुओं से हमें कितना लगाव रखना चाहिए।

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