पंच तत्व का आपस में हुआ विवाद कौन है सबसे बड़ा

आदिकाल में एक समय शरीर के भीतर निवास करने वाले सभी  देवी देवताओं वायु अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश, वाणी, मन आदि सभी में वाद विवाद हो गया। प्रत्येक स्वयं को श्रेष्ठ बता रहा था। हर कोई यह कह रहा था कि मैं इस नाशवान शरीर को जीवित रखता हूं । हर एक स्वयं को श्रेष्ठ बता रहा था। प्राण इन सबके वाद विवाद को देख रहा था। आज विवाद का कोई अंत ना देख आखिर में प्राण ने कहा आप लोग भ्रम में ना रहे । मैं ही शरीर को पांच भागों में विभक्त कर इस शरीर को जीवित रखता हूं। अन्य सभी देवी देवताओं को इस पर विश्वास ना हुआ स्वयं को श्रेष्ठ बताते रहे।

फिर प्राण ने स्वयं को शरीर से बाहर खींचना आरंभ कर दिया तब सभी अन्य तत्वों को यह अनुभव हुआ कि वह स्वयं को निष्कासित हुआ अनुभव कर रहे थे। जब प्राण ने दोबारा से शरीर में प्रवेश किया तब सभी ने स्वयं को क्रिया वान और अपनी अपनी जगह  पाया। प्राण की महत्वता और शिष्टता को स्वीकार कर लेने के बाद वे प्राण के सम्मुख नतमस्तक हो गए।

प्राण शरीर को जीवित रखने वाली एक सकती है और यही प्रत्येक स्तर पर सुरजन भी करती है भारत के मनुष्यों ने सदैव यह जाना और समझा। प्रतीक मंत्र यज्ञ तब एकाग्रता एवं ध्यान के विभिन्न प्रयासों का उद्देश्य यही होता है कि प्रत्येक मनुष्य के भीतर का व्यापक मैं स्थित उसे प्राणशक्ति को जागृत करना और उसका विस्तार करना है।संस्कृत शब्द प्राण दो ध्वनियों प्रा और ण से मिलकर बना है अर्थ है निरंतर या अर्थात वह शक्ति जो निरंतर गतिमान है।

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