कबीर जी का इतिहास तो सुना होगा उसके घर जितने लोग आते उन्हें कबीर जी बाहर से ही कहते “खाना खा कर जाना।”
घर में कुछ भी ना हो पर फिर भी वे बाहर से बैठे-बैठे कह देते थे। घर में उनकी पत्नी कमाल पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता था।
एक दिन कमाल ने कबीर से कहा आप जो भी आते हैं उन्हें खाने के लिए कहते हो पर घर में भी कुछ देखा करो खाने का निमंत्रण बंद कर दो।
कबीर जी ने कहा “ यह कैसे हो सकता है ? ग्रस्त आश्रम है। अपने आप आने बंद हो जाए तो बात अलग है वैसे मैं मना नहीं कर सकता ”
कमाल ने कहा “ पर मुसीबत तो हमारी है। ”
कबीर जी बोले
“ वे अपने आप आने बंद हो जाए तो ठीक है। मैं कैसे मना करू करूँ ?
कमाल ने सोचा कि कबीर जी की समझ में नहीं आएगा। कमाल ने कहा आप सबको खाने के लिए कहते हो पर घर में कुछ भी नहीं है।”
कबीर जी बोले, कोई बात नहीं । चोरी करेंगे।
कमाल हैरान रह गई। इतने बड़े संत चोरी करने की बात कह रहे हैं। शायद मुझे बना रहे हैं।
अतः उन्होंने कहा “चलो।”
आधी रात को दोनों चोरी करने गए। कमाल ने कहा “ अमीर के घर ताला तोड़ना है। उसमें से कुछ कम हो जाए कोई तकलीफ नहीं होगी। पर गरीब के घर ताला नहीं तोड़ना है। ”
कमाल ने सोचा कि कमाल के संत हैं! चोरी करेंगे ? कबीर जी तो दीवार के पास जाकर खोदने लगे, कमाल ने विचारा की अब तो हद हो गई।
मैंने तो मजाक में कहा और यह सचमुच चोरी करने लगे। दरवाजा खोल कर दोनों अंदर आए तो कबीर जी ने कमाल को कहा ,
“ मैं सबको खाने के लिए कहता हूं। उसमें मुख्य अनाज की कठिनाई होती है न!
कमाल ने कहा, “हां ”
कबीर जी बोले , “ हम अनाज के शिवाय कुछ नहीं चुराएंगे। ”
गेहूं और बाजरे की बोरियां चुराते हैं। फिर 2 बोरियां उठाने के बाद कबीर जी ने कहा “ठहरो।
अब मैं घर के मालिक को कह देता हूं हम चोरी करके जा रहे हैं।”
कमाल सोचने लगी कि अरे! यह किस प्रकार की चोरी है मार खिलानी थी तो मुझे साथ में लाए किसलिए?
चोर घर के मालिक को जगाते हैं । कबीर जी बोले, “ हमने चोरी की है कहने में क्या बुराई है। हम कोई दान करने तो आए नहीं हैं।
एक मालिक का माल जाए और सुबह उठकर दौड़-धूप करें। इस से अच्छा है कि पहले से बता दो ताकि उसकी मुसीबतें कम हो।”
कमाल ने कहा , “ आप जरा विचार करो। घर का मालिक जागेगा तो आपको पता है सारे गांव में बदनामी होगी कबीर चोर है कबीर चोर है हमारा नाम बदनाम होगा। फिर हमारे घर कोई नहीं आयेगा।”
कमाल को कहा,“ बस इतना ही चाहता हूं चोरी करें नाम बदनाम हो हमारे घर कोई नहीं आए भोजन बंद हो जायेगा। आपको कोई कठिनाई नहीं रहेगी। आंगन में आए व्यक्ति को बिना रोटी के कैसे जाने दिया जाए ”
यह गृहस्थाश्रम है।
विचार विचार में रास्ता कब बीत गया पता नहीं चला, राम के विचार में तो संसार का रास्ता कब पूरा हो जाए यह पता नहीं चलता। यह तो अवध का रास्ता पूरा हुआ है। इसमें हैरानी कैसी?
गृहस्थ आश्रम सचमुच बहुत ऊंचा होता है। धर्म ग्रंथों में लिखा है “धान्यों गृहस्थाश्रमः ”
गृहस्थाश्रम धन्य है जिस आंगन में संत आए जिस आंगन में भक्त आए जिस आंगन में अतिथि आए वह आंगन ईश्वर के लिए भी खुला है।
कितना बड़ा त्यागी है। पर भिक्षान देही के लिए गृहस्थ के आंगन में जाना पड़ता है। गृहस्थ आश्रम बहुत ऊंचा है जो हमें निभाना आये, बराबर उससे पालना भी आए।