फूलदेई त्यौहार क्यों और कैसे मनाया जाता है? | Phool dei Festival in Hindi

फूलदेई उत्तराखंड का एक लोक पर्व है जो कि प्रकृति के प्रति हमारे प्रेम को दर्शाता है और यह प्रकृति का आभार प्रकट करने वाला लोक पर्व है।

बच्चों में उल्लास का प्रतीक यह त्यौहार उत्तराखंड में चैत् माह के प्रारंभ में ही बसंत ऋतु के आगमन में मनाया जाता है, हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र के माह से ही नव वर्ष शुरू होताहै, इस समय प्रकृति नए-नए फूलों से लबालब भरी रहती है और अपनी सुंदरता से सबका मन मोह लेती है और चारों ओर हरियाली छाई रहती है।

इस समय जंगलो में नए-नए फूल जैसे फ्यूंली, बुरांश, लाई, ग्वीर्याल, किनगोड़, हिसर, काफल् के फूल लदे रहते है जो प्रकृति में चार चाँद लगाते है इन्हे देख कर  मन की प्रसंता को शब्दों में लिखना बड़ा कठिन विषय है।

कैसे मनाया जाता है फूलदेई पर्व ?

चैत्र के महीने के शुरू से ही बच्चों की टोली प्रात काल में उठकर नहा धोकर जंगलों से या नजदीकी क्षेत्र से विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगे  फूलों को इकट्ठा करके बांस के कंडी में भरकर लाते हैं फूलकंडी को लेकर बच्चे घर-घर जाते हैं और घर की देहरी पर फ्योली, बुरांश अन्य रंग बिरंगे फूल डालते हैं तथा परिवार के सुख -शांति और समृद्धि के लिए शुभकामनाएं देते हैं।

घर की महिलाओं के द्वारा घर पर आए हुए बच्चों की टोलियों का स्वागत किया  जाता है और उपहार स्वरूप उन्हें चावल गुड़ , मिठाई एवं दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे दिए जाते हैं। इस मौके पर  बच्चों एवं लोगों के द्वारा उत्तराखंड के लोकगीत भी गाये जाते हैं, प्रसिद्ध फूलदेई क्षमा देई गीत भी गाया जाता है।

फूलदेई गीत

फूल देई, छम्मा देई

        देणी द्वार, भर भकार

        ये देली स बारम्बार नमस्कार

       फूले द्वार …….फूल देई छम्मा देई!

मंगल गीत का अर्थ कुछ इस प्रकार से निकलता है –

फूल देई – देहली फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो ।

छम्मा देई – देहली , क्षमाशील अर्थात सबकी रक्षा करे ।

दैणी द्वार – घर व समय सबके लिए  सफल हो ।

भरि भकार – सबके घरों में अन्न का भंडार हो , खाने की कमी न हो।

इस महीने ढोल दमाऊ बजाने वाले लोग घर घर जाकर वादन करते हैं और उपहार में उन्हें चावल, गेहूं ,आटा , तेल इत्यादि दिया जाता है।

फूलदेई का इतिहास

फूलदेई का पर्व बहुत पुराना एवं ऐतिहासिक पर्व है , यह न सिर्फ प्रकृति और हमारे बीच के संबंध को प्रदर्शित करता है बल्कि पर्यावरण को बचाने का संकल्प प्रदान करता है, उन पेड़ पौधों को बचाने का संकल्प प्रदान करता है, उन जंगलों को एवं पर्यावरण को बचाने का संकल्प प्रदान करता है जिनके सहयोग से हमें एक स्वच्छ  जीवन और जलवायु में जी रहे हैं, यह उन फूलों के अस्तित्व को बचाने का भी संकल्प है जिन्हें हम घर की देहली पर डालते हैं ।

वर्तमान समय में यह पर्व अपने अस्तित्व को खो रहा है यदि हमें इस पर्व के अस्तित्व को बनाए रखना है तो समाज में जागरूकता लानी बहुत जरूरी है एवं बच्चों और युवा पीढ़ी को अपनी सभ्यता और संस्कृति के विषय में विस्तार पूर्वक विवेचना करना जरूरी है तभी हम इस पर्यावरण को और इस प्रकार के पर्वों को  वर्तमान समाज में जिंदा रख सकते हैं ।

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