भगवान सूर्यनारायण के महत्वता
इस संसार में भूलोक पर जो भी दृष्टिगोचर है वह सब भगवान सूर्यनारायण की ही कृपा है। सृष्टि के मूल प्रसव है। संपूर्ण लोगों की आत्मा है।
पृथ्वी एवं भूलोक पृथ्वी से ऊपर दृष्टिगोचर मात्र आकाश रही सीमा नहीं उसके अनन्य लोक हैं के मध्य स्थित सौर मंडल जहां सभी ग्रह नक्षत्र तारे आदि अपनी अपनी गति से सूर्य के चारों ओर भ्रमण शील है।
के भीतर कालचक्र में स्थित हो वर्ष भर 12 मासों में एक राशि से दूसरी राशि में क्रमशः मेष वृष मिथुन कर्क सिंह कन्या तुला वृश्चिक धनु मकर कुंभ मीन में विभाजित है।
सूर्य जब एक राशि पार कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उसी कार्य को संक्रांति कहते हैं। सूर्य एक अग्नि पिंड है शास्त्रों के अनुसार पार्थिव आंतरसीय एवं दिव्य तीनों अग्निओं का एक समष्टि रूप पिंड है।
पेंट की उत्पत्ति और स्थिति सोम के बिना संभव नहीं अग्नि पिंड होने के नाते सूर्य सदैव प्रज्वलित रहता है।
अग्नि में जब तक सोमाहूति तभी तक वह प्रज्वलित रहती है आहुति के बंद होते अग्नि अच्छन हो जाती है बुझ जाती है अथवा शांत हो जाते हैं।
अतः सदैव प्रज्वलित दिखाई पड़ने वाले सूर्य पिंड में अवश्य किसी की निरंतर आहुति माननी होगी विज्ञान के आधार पर सूर्य में निरंतर बृहस्पति सोम क्या होते होती रहती है।
जिससे अरबों वर्षों से सूर्य का स्थिर स्वरूप बना हुआ है और आगे भी बना रहेगा आज के वैज्ञानिकों के मतानुसार सूर्य प्रकाश का एक बड़ा पुंज है स्रोत है।
जो पृथ्वी से 930 लाख मिल की दूरी बनाए है जिसका प्रकाश पृथ्वी पर 1, 86000 नील की प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी पर एक सेकंड में पहुंचता है।
इसका अनुमानित व्यास 8, 64000 पृथ्वी से 108 गुना वर्ग मील है इसका भीतरीय तापक्रम जहां4, 00,000,00 है वहां पृथ्वीलोक के प्राणी तो क्या अगर पृथ्वी भी पहुंच जाए तो भाप बनकर उड़ जाए।
पृथ्वी के कुछ भाग पर इसका अधिकतम तापमान 14 से फेरन हाइट है वैज्ञानिकों का अनुमान है सूर्य का तापमान उस्मान निरंतर इसके एवं पृथ्वी के अंतराल में गैसों के सेंड होने से बड़ी रही है।
सूर्य से प्रतिपादित धरातल पर प्रकाश से 12 सोमिल ऊपर तक की प्रथम परत को उत्क्रमण मंडल कहते हैं यह परत पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों से बनी गैसों का एक पुंज है।
उत्क्रमण परत से ऊपर कटाई हजार मिल मोटी हल्की गैसों की भी अक परत है जिसमें हाइड्रोजन हिलियम आदि कैसे हैं इस परत को friend मंडल कहते हैं।
वैज्ञानिकों के मतानुसार सूर्य गैसों का ही बना एक सामूहिक पुंज है जिसमें हाइड्रोजन की प्रधानता है और जो हिलियम में बदलती रहती है ।
इसी गैस के नाम से सूर्य को संस्कृत में हेली कहते हैं सूर्य एक अग्नि पेंट है अग्नि पिंड काला है इससे Krishna अग्नि में सूर्य पिंड में ज्योति प्रकाश सुमन की आहुति से है।
प्रकाश केवल अग्नि में नहीं प्रकाश अग्नि एवं सोम के यज्ञ आत्मक सम्मिश्रण में है इस यज्ञआत्मक क्रिया से कुप्पन्ना प्रकाश को जिसे हम सूर्य का प्रकाश मानते हैं।
यह एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है जो वास्तविकता में वैज्ञानिक ही है सूर्य किरणों में उपलब्ध ताप भी पार्थिव अग्नि के समय क्षण का ही फल है सूर्य के अनंत रश्मि यू में किरणों में सात प्रमुख रश्मिया है।
सात प्रकार के रंग निकलते हैं जिसे Vibgyor कहते हैं उन्हीं रंगों का मिश्रित स्वरूप सफेद रंग अथवा प्रकाश के रूप में दृष्टिगोचर है। 707 रूप सात धातु इत्यादि रश्मि यों के आधार पर ही है। भगवान सूर्य के सहस्त्र नाम है। धर्म अनुरागी जन उनका उन नामों से सदैव आराधना करते है।
मुख्य रूप से निम्नलिखित नामों से उन को अर्घ्य देकर उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है भगवान सूर्यनारायण सर्वोपरि देव है मात्र यही ऐसे देवता है।
जो साक्षात दृष्टिगोचर तंत्र शास्त्र के अनुसार बिजनौर नींबू के बीज के तेल को किसी तांबे की प्लेट पर लगाकर यदि दोपहर को सूर्य की प्लेट में से देखा जाए तो भगवान सूर्यनारायण के साक्षात रथ पर विराजित दर्शन होते हैं
ऐसे भगवान सूर्यनारायण की पौराणिक ग्रंथ हो एवं ब्रह्म पुराण में उत्पत्ति की कथा इस प्रकार से आती है। प्रजापति दक्ष के 60 कन्या उत्पन्न हुई जो क्रमशः अदिति दीप्ती दनो एवं विनता इत्यादि नामों से प्रसिद्ध हुई।
8 कन्याओं में से 13 कन्याओं का विवाह दक्ष प्रजापति ने ऋषि कश्यप से कर दिया। इन ऋषि पत्नियों में से अदिति ने देवताओं को और दिति असुरों एवं बेटियों को जन्म दिया।
धनु ऋषि पत्नी के दानवों ने जन्म लिया एवं दानव अति बली शक्तिशाली अभिमानी भयंकर एवं क्रूर थे दक्ष पत्नियों के पुत्र पुत्र संतानों से ही संपूर्ण जगत व्याप्त हो गया।
कश्यप ऋषि की संतानों में से ही देवता दानव दैत्य इत्यादि हुए एक ही पिता की संतान होते सभी के गुण स्वभाव विपरीत थे। देवता पुत्र जहां सात्विक वृत्ति के वहां दैत्य दानव तामसी प्रवृत्ति के।
इन्हीं प्रतिकूल सभा व शक्तियों की देवताओं के प्रति शत्रुता का भाव था ।
वह सदैव देवताओं को प्रताड़ित करते दुख देते और उनसे युद्ध करते ऐसा करते-करते देवताओं को देशों में परास्त कर दिया उनको उनके पदों से हटा दिया।
उनका राज्य इत्यादि छीन लिया माता अदिति अपने पुत्रों के प्रति सूर्य के इस व्यवहार से अति दुखी हुई और इस दुख के निवारण हेतु उसने भगवान सूर्यनारायण की कृपा पाने हेतु घोर तपस्या की।
नियमित आहार सदाचार एवं कठोर नियम का पालन किया। भगवान सूर्य की प्रशंसा पाने हेतु ऋषि पत्नी ने प्रार्थना की हे भगवान आप जगत के अधिकरण हैं, आप ही इस संसार के प्राण दाता और प्राण रक्षक भी हैं। प्रभु मेरे पर शीघ्र प्रसन्न होकर मेरे दुखों को मेरी संतानों के दुख को दूर करें।
वह आप के भक्त हैं, हे प्रभु मैं आपको साक्षात रूप में देखना चाहती हूं, भगवान भास्कर ने देवी अदिति की भक्ति निष्ठा अर्चना पर प्रसन्न होकर उसको साक्षात दर्शन देकर कहा देवी आपकी जो इच्छा हो उसके अनुसार वर मांगो।
अदिति ने कर वध याचना कर दानवो का देवताओं के प्रति व्यवहार निवेदन करते हुए देवताओं की अपने शत्रुओं से रक्षा कर वर मांगते भगवान सूर्यनारायण से उनके ही अंश से उन्हें अपने पुत्र देवताओं का भाई होना मांग लिया।
प्रभु आप ही मात्र मेरी संतान होकर देवताओं को तंग करके दैत्यों से लोहा ले सकने में समर्थ है। उनके शत्रुओं का आप ही नाश कर सकते हैं।
प्रसन्न होकर भगवान रवि ने अपने अंश से हजार विभाग का अदिति के गर्भ में आना स्वीकार कर लिया। इतना कहकर भास्कर अंतर्ध्यान हो गए।
1 वर्ष के अंतराल में अदिति के गर्भ से भगवान सविता ने निवेदन किया। अदिति अपनी तपस्या के बल पर जान गई कि उसके गर्भ में कौन है।
उसने पुनः एकाग्र चित्त हो चंद्र नारायण अति वृत्तूम का कठोर से पालन करते भगवान भास्कर की अर्चना तपस्या प्रारंभ कर दी।
अदिति की गर्व काल के समय ऐसी घोर तपस्या अर्चना देख ऋषि कश्यप अपनी पत्नी पर कुपित भी हुए। मगर निश्चित देवी ने अपने आराध्य देवता की आराधना निरंतर गतिशील रखते अंततः उदय कालीन सूर्य के समान तेजस्वी बालक को जन्म दिया।
जिसे देख पिता ऋषि कश्यप अभी भोचके रह गए। ऋषि ने करबद्ध हो अपने ही बालक की आराधना कि, तभी एक आकाशवाणी हुई।
मने तुमने अदिति से कहा था तूने गर्व के बालक को मार डाला इसलिए तुम्हारा यह पुत्र मार्तंड के नाम से विख्यात होगा और यज्ञ के भाग का अपहरण करने वाले देवताओं की शत्रुओं का नाश करेगा।
यह आकाशवाणी सुन सभी देवताओं को भी बड़ा हर्ष हुआ और दानव हतोत्साह हुए। अर्थात जो व्यक्ति किसी भी प्रकार के सांसारिक व्यवसायिक पारिवारिक चिंताओं से ग्रस्त है।
अगर वह नित्य प्रति भगवान सूर्यनारायण को जल अर्पण करता है और भगवान सूर्यनारायण के मंत्रों का जाप करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।