योग वशिष्ठ (रामायण काल) का सामान्य परिचय

योग वशिष्ट क्या है

राम जी को वैराग्य हो जाने पर वशिष्ट जी ने उनको जो उपदेश और शिक्षा दी उस पर आधारित है। भगवान राम छोटे में गुरुकुल गए। वहां पर शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारद्वाज ऋषि के आश्रम में गए । वहां से आने के बाद तीर्थों को चले गए सभी तीर्थों के दर्शन करने के बाद वहाँ से वापस लौटने पर उनके मन में वैराग्य आ गया।

इस संसार की स्थिति देख कर के उन्होंने मन में सोचा कि यह संसार मिथ्या है। उस समय उनकी आयु केवल 16 वर्ष की थी। भगवान राम ने मात्र 16 वर्षों में ही पूरे विश्व भर का भ्रमण किया। उन्हें सुख दुख अमीर गरीब का सारी सृष्टि में अवलोकन किया। सभी व्यक्तियों के बारे में सोचा। जन्म मृत्यु इन सभी के बारे में सोचने के बाद उनके मन में वैराग्य सा जाग उठा।

वही उसी समय विश्वामित्र जी का उनके आश्रम में आना हुआ। क्योंकि जब वह अपने आश्रम में कोई भी यज्ञ करते थे, तो राक्षस उनके यज्ञ में बाधा डालते थे। तो उन्हें श्री रामचंद्र जी की आवश्यकता थी। उन राक्षसों के अंत के लिए वह राम जी को अपने साथ ले जाना चाहते थे।

परंतु अयोध्या में आते ही उन्हें राम जी के बारे में पता चला कि उन्हें वैराग्य हो चुका है। इसी विषय में उन्होंने अयोध्या के राजा दशरथ से राम जी के प्रति चिंता जताई। राजा दशरथ, विश्वामित्र और वशिष्ठ इन तीनों ने मिलकर राम जी को इस दुविधा से बाहर निकालने के लिए व एक नई शुरुआत के लिए उन्हें सभा में बुलाया।

उनसे इस बारे में चर्चा की ओर उनके साथ भेजा। योग वशिष्ट जी राम जी के विचार सुनने पर भी चिंतित हो गए। सभा में सभी लोग भी हैरान हो गए कि राम जी की वैराग्य पूर्ण बात सुनकर सभी चिंतित थे। अयोध्या का साम्राज्य कौन चलाएगा। इसके लिए विश्वामित्र जी ने वशिष्ठ जी को उपदेश देने को कहा इसमें 6 प्रकरण है और इसमें राम जी को उदाहरणों के माध्यम से बताया गया है और प्राकृतिक संतुलन के बारे में बताया गया है।

पहला प्रकरण वैराग्य प्रकरण

राम जी की वैराग्य पूरी स्थिति का वर्णन कर रहे है तीर्थ भ्रमण के बाद वैराग्य की स्थिति उत्पन्न हुई । जैसे महात्मा बुद्ध को हुई थी जगत के मुख्य तत्व को देखा। जगत के दुख को देखा। उनके मन में वैराग्य आ गया। हम जो ज्ञान लेते हैं उसको हम समाज के ऊपर प्रयोग नहीं करते। तो हमें उसका ज्ञान नहीं होता। इस प्रकरण में इसी के बारे में चर्चा हुई है और सुखदेव द्वारा मोक्ष की परम अवस्था को प्राप्त करना।

दूसरा प्रकरण मुमुक्ष व्यवहार प्रकरण

राम जी को वैराग्य हो गया था तो वशिष्ठ जी ने सुखदेव जी की कथा सुनायी। सुखदेव जी को जो पहले से ज्ञान था। उनको नहीं पता था कि वह भटक रहे थे। पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनकी चर्चा भी यहां पर की गई है। मोक्ष के चार द्वारपालों की चर्चा भी इसी प्रकरण में हुई है मनो दैहिक विचारों के बारे में बताया गया है।

तीसरा प्रकरण उत्पत्ति प्रकरण

पूरे शरीर के बारे में बताया गया है व्यवहारिक शरीर के उद्देश्य, पुनर्जन्म की चर्चा, मन की चर्चा, मन का लगातार चंचलता में बने रहना, मन का निग्रह, वासना प्रकार, इसको खत्म कैसे करे, ज्ञान के सात भूमिया, चित्त का विलास द्वैत अवस्था, चित्त की आदत, अवस्था संशय की ओर दौड़ना है इस पर चर्चा की गई है मोक्ष के चार द्वारपाल के बारे में बताया गया है।

चौथा प्रकरण स्थिति प्रकरण

जगत का कारण चित्त की शुद्धि किस प्रकार हुई है चित्त में ज्ञानी की अवस्था। राग, इच्छा के बारे में मन इंद्रियों की प्रबलता, ज्ञानी अज्ञानी में अंतर, संसार का प्रधान तत्व क्या है, इस पर विशेष रूप से चर्चा की गई है और ज्ञान की शब्द भूमियों की चर्चा इस में की गई है।

पांचवा प्रकरण उपासना प्रकरण

माया के पदों की वजह से ब्रह्मा जगत के रूप में दिखाई दे रहा है। माया का पर्दा हटने पर वास्तविकता का ज्ञान होगा। जीवन मुक्ति, विदेह मुक्ति, माया का पर्दा, अनासक्त कर्म, जीवन मुक्ति, विदेह मुक्ति, कर्म संस्कार की वजह से जीवन चल रहा है इस पर चर्चा की गई है और ध्यान के 8 अंगों की चर्चा इसमें की गई है।

छठा प्रकरण निर्माण प्रकरण

जगत का कारण भ्रम है, विभूतियों का वर्णन, अष्टांग योग जैसे उपनिषद में बताया गया है व्यवहारिकता के विषय में भगवान राम को बता रहे हैं। योग के विषय की चर्चा, सुखदेव द्वारा मोक्ष की अवस्था को प्राप्त करना है, इस पर चर्चा की गई है और योग मार्ग के विघ्नों की चर्चा इस में की गई है।

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