दमा : दमा श्वसन तंत्र से संबंधित रोग है। इस रोग में स्वसन तंत्र के अंतर्गत श्वास नली तथा उसके बाद छोटी-छोटी श्वास नलिकाओ के द्वारा, वायुमंडलीय हवा फेफड़ों में ऑक्सीजन बनकर पहुंचाती है। इसी ऑक्सीजन से शरीर में प्राण संचार में वृद्धि हो पाती है। जिससे शरीर के अस्तित्व को बनाए रखने में सहायता मिलती है।
जब वातावरणीय तापमान मे विभिन्न प्रकार के वायुमंडलीय कण धूल कण श्वास नली में पहुंचकर उनके मार्ग को संकुचित कर देते हैं। इसके साथ नकारात्मक भावनाओं के आवेग जैसे भय चिंता इत्यादि तथा आहार में कफ जनित पदार्थों का श्वसन तंत्र की श्लेष्मा में वृद्धि कर श्वसन नलिकाओं मे संकुचन उत्पन्न कर देते हैं। इस संग्रहण करने की कठिनाई को दमा कहा जाता है।
अवरोधन का कारण अत्यधिक मात्रा में गाढी म्यूकस श्लेष्मा का स्राव होता है, दमा का दौरा कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों या कुछ दिनों तक भी चल सकता है जो रोगी के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकता है।
जैसे-जैसे दौरा बढ़ता है, ऑक्सीजन की कमी से व्यक्ति की श्लेष्मा झिल्लियों का रंग नीला पड़ने लगता है। बिना उपचार के दौरान एक चक्र की भांति चलता रहता है। जितनी अधिक देर तक रोगी श्वास लेने के लिए जूझता है, दौरा उतना ही लंबा तथा उतना ही तीव्र तथा कष्टमय होता चला जाता है।
दमा के कारण –
अत्यधिक धूम्रपान करने से
अत्यधिक मदिरापान करने से
वातावरण के कारण
आटा चक्की पर काम करने का व्यवसाय
बरसात की नमी वाले घर में रहना
कारखानों का धुवाँ
अत्यधिक भोजन
गरिष्ठ व कब्ज जनित पदार्थ जैसे भिंडी उड़द की दाल राजमा पूरी छोले इत्यादि
भोजन के पश्चात आइसक्रीम खाने से
असंतुलित आहार से
अचानक गर्म से सर्द व सबसे गर्म वातावरण में बारंबार होना
सुगंधित पदार्थ की एलर्जी से
अत्यधिक शारीरिक श्रम व व्यवसाय
रोग के द्वारा
दमा के लक्षण-
श्वास लेने में कठिनाई , श्वास छोड़ने में कठिनाई, बार बार खांसी आना, रात्रि के समय अत्यधिक खांसी, श्वास लेने में घुटन श्वास लेते समय सीटी की आवाज, थोड़ा शारीरिक श्रम करने पर थकना व सांस फूलना, अपच व अजीर्ण की शिकायत, बार बार सर्दी जुकाम की शिकायत, रात्रि में सोने में कठिनाई व निद्रा का अभाव, छाती में भारीपन बेचैनी और घबराहट उत्पन्न होना, काम में जीना लगना और मानसिक थकावट की अनुभूति।
दमा के लिए आसन-
भुजंगासन
धनुरासन
मत्स्यासन
उष्ट्रासन
गोमुखासन
शशांक आसन
अर्धमत्स्येंद्रासन
हस्तोत्तानासन
हलासन
धनुरासन
जानू शीर्षासन
प्राणायाम चिकित्सा-
सूर्यभेदन प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम ,भस्त्रिका प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, अनुलोम विलोम प्राणायाम और भ्रामरी प्राणायाम प्रतिदिन 15 से 20 मिनट की अवधि में करने चाहिये।
दमा के लिए आहारिय चिकित्सा (पथ्य आहार) –
सुपाच्य भोजन जैसे मूंग, मसूर, चना, सोयाबीन, अरहर आदि पत्ता गोभी, सेमफली, बैंगन, आलू, अल्प मात्रा में शलगम, मेथी, पालक, बथुआ, गाजर, तोरी, टिंडा, काशिफल, आम, अनार , वनस्पति, पपीता ,अमरूद अंगूर, सूखे मेवे, करेला, मेथी धनिया, पुदीना, अदरक और लहसुन।
दमा में हानिकारक आहार-
गरिष्ठ भोजन जैसे छोले पकोड़े, अत्यधिक मिर्च मसालेदार खाद्य पदार्थ जैसे भेल पुरी, गोलगप्पे आदि, धुम्रपान, तंबाकू सेवन, मदिरापान, मांसाहारी भोजन जैसे अंडा, मछली व बकरी आदि देसी घी, मक्खन, दूध, दूध से बने पदार्थ, मिठाईयां, बासी भोजन, छाछ मलाई, उड़द की दाल, नारियल और डिब्बाबंद भोज्य पदार्थ शरीर के लिए हानिकारक है।