कौवे की चोंच के समान ओठों को करके उनके द्वारा वायु का पान करते हुए उदर को भर लें। उस पान की हुई वायु को आधे प्रहर (डेढ घष्टा) तक उदर मे रोक कर परिचालित करते हुए अधोभार्ग से निकाल दे । यह परम गोपनीय विधि बांहेष्कृत धौति कहलाती है।
इस अभ्यास को करने के लिए प्राणायाम को सिद्ध करना आवश्यक है। क्योकि यदि आप बांहेष्कृत धौति की विधि को समझें, तो आपकी यह अनुभव हो जायेगा कि जब तक प्राणायाम सिद्ध नहीं होता, व्यक्ति इस धौति का अभ्यास नहीं कर सकता।
विधि –
ध्यान के किसी सुविधाजनक आसन में बैठकर, मुख को कौवे की चोंच के समान बनाकर शने शने वायु को उदर के भीतर भर लेना है। काकी मुद्रा के अभ्यास में ओंठों को गोल बनाकर, मुँह से हवा को पीना है जिस प्रकार से पानी पीते हैँ, ठीक उसी प्रकार से हवा को पीते हैं। उस हवा को पेट मे रखते हैं ।
एक याम होता है तीन घंटा । आधा याम का अर्थ हुआ डेढ घंटा । आधे याम तक हवा को पेट मे रखना है। पेट को चलाकर फिर वायु को अधो मार्ग से, गुदा द्वार से बाहर निकाल देना है ।
इस अभ्यास को सिद्ध करने के लिए योग शास्त्र में बतलाया जाता है कि व्यक्ति को प्राणायाम सिद्ध होना चाहिए । क्योकि जब हम डेढ़ घण्टे तक वायु को अपने उदर में रखते हैं, तो उसका यह अर्थ होता है कि साधक का मांसपेशियो और स्वचालित तांत्रिक तंत्र पर पूर्ण नियन्त्रण होना आवश्यक है, क्योकि यदि पेट, अत्र नलिकाओँ एवं आंतो की मांसपेशियों पर नियन्त्रण नहीं होगा, तो वायु डकार या अपान वायु के रूप में शरीर से बाहर निकल जायेगी ।