केनोपनिषद :- यह उपनिषद सामवेद के तलवकार ब्राह्मण के 9वीं अध्याय के अंतर्गत है। तलवार को जैमिनीय उपनिषद भी कहते हैं। केनोपनिषद के चार खंड हैं। उपनिषद में शिष्य गुरु से सवाल करता है कि आंख कान नाक हमारी इंद्रियां किसके द्वारा प्रेरित होती हैं।
हमारा प्राण ईश्वर से प्रेरित होता है। ईश्वर ही ब्रह्म है। प्राण के द्वारा मन को प्रेरित किया गया है। मन सभी के साथ होता है। प्राण ब्रह्म के द्वारा प्रेरित होता है। मन के द्वारा ज्ञानेंद्रियां, ज्ञान इंद्रियों के द्वारा उनके विषय प्रेरित होते हैं। परमात्मा वह तत्व है जिसके प्रेरणा से हमारा मन मनन करता है। ब्रह्म का ज्ञान ही सत्य का अनुभव है। सत्य का अनुभव करने के लिए मन को जानना है। सत्य का अनुभव किस प्रकार किया गया है यह यक्ष उपाख्यान में बताया गया है।
यक्ष उपाख्यान का उदाहरण देवताओं का असुरों से युद्ध होता है, तो वह जीत जाते हैं। देवताओं को अहंकार हो जाता है तो ब्रह्मा जी यानी (यक्ष) उस ब्रह्म की वजह से देवताओं ने विजय प्राप्त की थी। तब देवताओं ने सोचा यह विजय उनके निजी प्रयत्नों से मिली है।
ब्रह्म ने देवताओं के मनोभावों को जान गया और उनके सामने यक्ष के रूप में प्रकट हुआ। यक्ष के रूप में आए हुए उस ब्रह्मा को लोग नहीं पहचान सके कि यह कौन है। वे देवता अग्नि से बोले हे अग्नि यह ज्ञात करो कि यक्ष कौन है। अग्नि ने स्वीकृति दे दी।
अग्नि यक्ष रूपी ब्राह्मण के पास गया। यक्ष ने अग्नि से पूछा तुम कौन हो। इस पर अग्नि ने उत्तर दिया मैं अग्नि हूं। मेरा नाम जावेदा भी है। इस पर यक्ष ने पूछा है जात वेदा तेरे नाम के अनुरूप तुझ में कौन सी शक्ति है। अग्नि ने उत्तर दिया पृथ्वी में दिखाई देने वाले इस समस्त चराचर को मैं जला सकता हूं । आकाश में स्थित वस्तुओं भी मुझसे जल सकती हैं। यक्ष ने अग्नि को तिनका दिया तो अग्नि ने उसे ना जला सका।
सभी देवताओं ने वायु को आज्ञा दी कि तुम जाओ और यह पता लगाओ कि यह यक्ष कौन है। तब वायु यक्ष के पास गए और पूछा कि तुम कौन हो तो यक्ष ने वायु से प्रश्न किया कि पहले तुम बताओ तुम कौन हो और तुम में कौन सी विशेष शक्ति है।
तो वायु ने उत्तर दिया इस समस्त ब्रह्मांड में जितनी भी वस्तुएं हैं मैं उन सब को उड़ा सकता हूं । तो फिर यक्ष ने उन्हें भी तिनका दिया तो वायु ने उसे भी हिला ना सका। यह देखकर वायु देव आश्चर्यचकित होते हैं और इंद्र के समक्ष जाते है और इंद्र देव को इन सभी घटना के बारे में बताते हैं।
तू इंद्रदेव का अहंकार और बढ़ जाता है कि इस चराचर जगत में हमसे बड़ा कौन है वह स्वयं वहां जाते हैं जब इंद्र वहां पहुंचते हैं तो यक्ष गायब हो जाते हैं। उनके सामने देवी उमा आती है वह बताती है कि यह जो अलौकिक शक्ति है वह ब्रह्म है।
आपका जो युद्ध हुआ है यह सब उन्हीं की शक्ति से संपूर्ण हुआ है अग्नि और वायु ने केवल सुना और इंद्र ने उनके बारे में जाना। तभी इंद्र को सबसे ज्ञानी बताया गया है। उमा एक गुरु के रूप में आई है अपनी शक्ति को उन्होंने पहचाना है। ईश्वर का जानना और उसे अपने व्यवहार में लाना दोनों अलग है। इस समस्त सृष्टि का निर्माण ब्रह्म से ही हुआ है वही सृष्टि करता है उन्हीं से यह सारी सृष्टि चलती है उनसे बड़ा कोई नहीं।
प्रश्नोत्तरी
प्रश्न : केनोपनिषद के अनुसार यक्ष कौन है
उत्तर : केनोपनिषद के अनुसार यक्ष ब्रह्म है