प्राचीन समय की बात है कि एक बार नारद जी भूलोक भ्रमण के लिये निकले एक स्थान पर एक साधक बरगद के वृक्ष के नीचे बैठकर साधना कर रहा था । तभी नारद जी ने देखा कि भक्त साधना में व्यस्त है, वह आगे बढ़ गये। संयोगवश 10 वर्ष पश्चात् फिर से वहीं से नारद जी का गमन हो रहा था और नारद जी देखते हैं कि साधना में व्यस्त वह व्यक्ति अभी भी वहीं लगा हुआ है।
नारद जी के मन में इच्छा हुई की इस तपस्वी से बात की जाय तो वह उसके पास पहुंचे और उसके साधना से उठने की प्रतीक्षा करने लगे कुछ समय बाद वह साधक उठा और देखता है कि सामने नारद जी बैठे हैं। साधक ने सादर प्रणाम किया। नारद जी ने पूछा कि आप कौन हैं तो इस पर साधक ने बताया कि वह मोह-माया से एकांत में रहना पसंद करता है और जब समय मिल तो प्रभु नाम स्मरण करता है।
नारद जी ने कहा कि वो आपकी साधना से प्रसन्न हैं और प्रभु के पास जा रहे हैं यदि उसका कोई प्रश्न हो तो पूछ सकता है और मैं प्रभु नारायण को पूछ कर वापस आते समय आपको बता दूंगा। साधक ने कहा कि वैसे उसकी कोई ऐसी इच्छा नहीं है परन्तु यदि आप नारायण के पास जा रहे हैं और प्रश्न पूछने का आग्रह कर रहे हैं तो मेरा यह प्रश्न है कि मेरी भेंट प्रभु से कब होगी? यह प्रश्न आप पूछ देना। नारद जी ने कहा अवश्य में इस प्रश्न को पूछकर जब वापस आउंगा तो आपको बता दूंगा। नारद जी आगे बढ़ गये।
नारद जी आगे बढ़ गये। आगे चले तो उनको एक नाग मिला उन्होंने नाग से पूछा कि आप यहां क्या कर रहे हैं तो नाग ने कहा कि इस जमीन के नीचे धन गढ़ा है और मैं उसकी कई सौ वर्षों से रक्षा कर रहा हूं और प्रभु का स्मरण करते हुए अपना समय व्यतीत कर रहा हूं। नारद जी ने उसे भी प्रश्न पूछने के लिये कहा तो उसने पूछा कि उसकी मुक्ति कब होगी यह पूछ देना। नारद जी आगे बढ़ गये।
नारद जी विष्णु लोक पहुंचे और प्रभु के दर्शन किये और प्रभू से उनके भक्तों के प्रश्नों को पूछा तो प्रभु नारायण ने कहा कि नाग का उद्धार चार वर्ष पश्चात् हो जायेगा और बरगद वाले साधक से कहना कि उससे मेरा मिलन जितने उस बरगद के वृक्ष पर पत्ते हैं उतने जन्मों बाद होगा। नारद जी प्रभु से आज्ञा लेकर चल पड़े और रास्ते में सोच रहे थे कि उस साधक का उत्तर कैसे दिया जाय। वह तो अपना उत्तर सुनते ही कहीं बेहोश न हो जाय या दुखी तो अवश्य होगा, इसी सोच में व्यस्त में रहे।
रास्ते में आकर सबसे पहले नाग से मिले और नाग को बताया कि उसका उद्धार चार वर्ष पश्चात् होगा। नाग बहुत खुश हुआ इतने वर्षों का फल मिलेगा यह सोचकर खुशी मनाने लगा। नारद जी चल पड़े जैसे-जैसे बरगद का पेड़ दिखाई देता तो सोचते कि साधक को क्या कहेंगे। आंखिर में साधक के पास पहुंचे और साधक ने उत्सुकता से अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाहा। नारद जी कुछ असमंजस की स्थिति में दिखाई दे रहे थे। परन्तु साधक के चेहरे पर कोई चिन्ता का भाव न था। नारद जी ने देखा कि बरगद का पेड़ पत्तों से लदालद भरा पड़ा है उन्हें और चिन्ता सताने लगी।
साधक के दुबारा पूछने पर नारद जी ने बताया कि जितने इस वृक्ष पर पत्ते हैं उतने वर्षा वर्षों बाद आपसे प्रभु मिलेंगे एसा प्रभु ने कहा है। साधक ने पेड़ की ओर देखा और कुछ सोचते हुए खुशी से नाचने लगा, जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि मेरे प्रभु। नारद जी ने सोचा सायद इसे सदमा लग गया है या फिर ये पागल हो गया है। परन्तु कुछ देर बाद साधक शान्त हो गया। नारद जी ने पूछा कि भाई इस पर आपको दुख नहीं हुआ कि इतने जन्मों बाद दर्शन होंगे। तब साधक ने बताया कि यह कोई चिन्ता का विषय नहीं है कि अब होंगे दर्शन या तब होंगे क्योंकि यह सत् प्रतिशत् की पुष्टि हो गई है कि प्रभु के दर्शन होंगे और जब उनके दर्शन होंगे तो मेरा उद्धार हो जाएगा।
तभी वहां पर शंख, चक्रधारी भगवान विष्णु आ गये और उस साधक को साक्षात दर्शन देकर उसका उद्धार कर दिया क्योंकि उस साधक को किसी भी प्रकार की जल्दीबाजी नहीं थी वह तो उस ईश्वर पर विश्वास करता था। दोस्तों विश्वास पर ही सम्पूर्ण धरती टिकी है यदि विश्वास नहीं तो कुछ भी नहीं, यहां तक की ये संसार भी नहीं है। इसलिए हमें चाहिए कि जिस किसी कार्य को भी हम कर रहे हैं उसे पूर्ण विश्वास के साथ करना चाहिए।
यदि आप इसी तरह की अन्य ज्ञान वर्धक कहानी पढ़ना चाहते है तो हमारे पेज प्रेरणादायक ज्ञानवर्धक हिंदी कहानी संग्रह पर क्लिक करे और आनंद से पढ़े ।