हठयोग के अनुसार धौति तीन प्रकार की होती है १ अंतधौति २ दन्त धौति ३ हद्धौति। इन तीनो धौति क्रियाओ के भी चार चार प्रकार होते है इसके माध्यम से योगीजन अपने शरीर को स्वस्थ बनाते हैं। जिनका षट्कर्म की क्रियाओ में मुख्य योगदान है। इन सभी धौतियो के माध्यम से हमारे शरीर के आंतरिक शुद्धी की प्रक्रिया अच्छे से हो जाती है। आमाशय, बड़ी आंत, छोटी आंत की अच्छे से सफाई होकर हर प्रकार की गन्दगी तथा विष शरीर से बहार निकल जाते है। और शरीर में नयी ऊर्जा का निर्माण होने लगता है
१ – अंतधौति – अंतधौति की क्रिया से अमाशय और अन्ननलिका की सफाई होती है। इसमें सफाई हवा, पानी व कपडे से करते हैं। । जिनसे आमाशय के विकार दूर होने लगते हैं। अपच तथा पेट से संबंधित अन्य रोग जैसे कब्ज अम्लता आदि धौति क्रिया से ठीक हो जाते है। इनके अभ्यास से शरीर निर्मल हो जाता है।
इस धौति के चार प्रकार होते है।
(क) वातसार अंतधौति (ख) वारिसार अंतधौति
(ग) अग्निसार (वहिसार) अंतधौति (घ) बहिष्कृत अंतधौति
वातसार – वातसार धौती मे वायु के माध्यम से आन्तरिक अंगो और आमाशय को साफ किया जाता है। अमाशय या अन नलिका में विकार और अशुद्धि होने पर वातसार के माध्यम से वायु पेट में भेजी जाती है। इस वायु के माध्यम से विषाक्त गैस और दुर्गन्ध युक्त वायु बाहर निकल आती है। जिससे पाचन क्रिया तीव्र होती है इसे ही वातसार धौती कहते है ।
वारिसार – वारिसार अंतधोति की दूसरी क्रिया है इसमें जल के माध्यम से आंतरिक अंगो की सफाई की जाती है। इसमें आमाशय को जल से भर देते है, फिर उसे बाहर निकाल देते है। जल के माध्यम से सफाई करने पर पित और कफ जो अन नलिका में अधिक मात्रा में रहते है, बाहर निकल जाते है। आंतो में जो विषाक्त पदार्थ चिपके रहते है , वह भी घुलकर बहार निकल आते है।
वहिसार- वहिसार अंतधोति की तीसरी क्रिया है। इसमें अग्नि के माध्यम से पेट की सफाई की जाती है। इसका दूसरा नाम अग्निसार है। इसमें अग्नि के द्धारा पेट की सफाई की जाती है । अग्नि से ताप्पर्य जठराग्नि से है। वहिसार धोति के माध्यम से आन्तरिक अंगो की सफाई करके पाचन क्रिया को तीव्र बनाते है। जिससे पाचन क्रिया ठीक से हो जाती है।
बहिष्कृत – बहिष्कृत चौथा अभ्यास है। इसमें भी वायु का प्रयोग आंतो की सफाई करने के लिये किया जाता है। जिससे छोटी आंत व बडी आंत की सफाई हो जाती है।
२ दन्त धौति – दन्तधौति में दांत की सफाई की जाती है । जोकि यहॉ पर इसका जो अर्थ लिया गया है वह है शीर्ष प्रदेश की सफाई, शीर्ष प्रदेश की स्वच्छता यानि गले से ऊपर का भाग । इसमे पहला अभ्यास है दांत की ज़ड़ की सफाई। दूसरा अभ्यास है – जीभ और उसके मूल की सफाई। तीसरे अभ्यास में दोनों कानो की सफाई। दोनों कानों को अलग-अलग लिया गया है । दायें कान की सफाई एक प्रकार की धौति मानी गयी है और बायें कान की सफाई दूसरे प्रकार की धौति मानी गयी है। इसके चार प्रकार निचे दिए गए है ।
(क) दंतमूल धौति (ख) जिहवाशोधन
(ग) कर्णरंध्र (घ) कपालरंध्र
३ हद्धौति – हद्धौति का अर्थ है ह्रदय प्रदेश की स्वच्छता । हदय की सफाई की यह क्रिया दुति कहलाती है। हदय प्रदेश की सफाई में अत्र नलिका, फेफड़े और पेट (आमाशय) तीनों का वर्णन किया जाता है । अत्र नलिका की सफाई तो सरल है; पेट की सफाई भी सरल है, लेकिन फेफडों. की सफाई कैसे की जाये? यहाँ पर हद्धोंति में जो तरीका बतलाया गया है, जिसके द्वारा हमारे , अपने भीतर कफ और अशुद्ध तत्वों को बहार निकाल सकें । श्वसन नली से भी इन्हें बाहर कैसे निकालें । इन तीन प्रक्रियाओं को हद्धोंति नाम दिया गया है ।
हद्धोंति का अभ्यास तीन प्रकार से किया जा सकता है l पहला प्रकार है-दण्ड धौति; दूसरा प्रकार है-वमन धौति और तीसरा प्रकार है-वस्त्र धौति। दण्ड धौति कै लिए केले का डण्डा और हल्दी का पतला तना, इनका प्रयोग किया जाता था । लेकिन वर्तमान में रबर से बने दंड का प्रयोग किया जाता है वस्त्र धौति कै लिए कपडे का प्रयोग किया जाता है।
(क) दण्ड धौति (ख) वमन
(ग) वस्त्र (घ) मुलशोधन
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