वीरांगना रानी अवंती बाई एक बहुत ही वीर स्त्री थी । जिन्हे शायद बहुत कम लोग जानते है । परन्तु इन्हाने 1857 ई में हुयी आजादी की क्रांति में अपना महत्वपुर्ण योगदान दिया था ।
इनकी वीरता और बुद्धिमता हमें उस समय देखने को मिली जब अंग्रेज भारत पर राज कर रहे थे । इनके पति जिनका नाम विक्रमादित्य सिंह था । विक्रमादित्य का राज्य हडपने के लिये उन्हे अंग्रजो ने विक्रमादित्य को पागल घोषित कर दिया था । और इनकी मृत्यु के बाद इनके नाबालिक दो पुत्रो अमान सिंह और शेर सिंह को अंग्रेज उतराधिकारी नही मान रहे थे । और कोर्ट आफ आवर्डस के नियम के तहत रामगढ पर अपना अधीपत्य जमाने लगे ।
उस समय रामगढ का शासन रानी अवन्तिबाई ने अपने हाथो में लेकर अपनी वीरता का परिचय देकर अंग्रजो के विरुद्ध युद्ध का विगुल फुक दिया ।
रानी अवन्तिबाई ने अपनी आसपास की रियाशतो को संदेश भिजवाया । संदेश के साथ में उन्हे चुडिया भेजी गयी थी । और कहा गया था कि यातो हाथ में तलवार उठाओ या चूडिया पहन लो। भारत माता की रक्षा के लिये आगे आओ। सभी राजाओ ने रानी की इच्छाशक्ति को पहचानते हुये रानी की मदद को तैयार हो गये और रानी के देशभक्ति से भरे शब्दो से उनकी देश भक्ति भी जाग गयी ।
शाहपुद के राजा ने नरायणगंज पर आक्रमण किया तो उधर बहादुर सिंह लोदी ने शाह में युद्ध की कमान सभाली। अंग्रेज सेना में सामिल हुये भारतीय सैनिक भी बलदेव तीवारी जो पाटन के सुबेदार थे से जा मिले ।
रानी ने भी राजा सुरत प्रसाद जो विजय राघवगढ के राजा थे के साथ मिलकर नर्मदा नदी के सारे उतरी क्षेत्र में युद्ध का मोर्चा संभाला ।
रानी ने मंडला पर आक्रमण करने की पुरी तैयारी कर ली थी। लेकिन तभी अंग्रेजो का सेनापति वाडिंगटन युद्ध करने आ पंहुचा। रानी ने अपनी पुरी शक्ति के साथ इसके साथ घोड़े पर बैठकर युद्ध किया । और काली का रुप धारण कर शत्रु की सेना का संहार करती जा रही थी।
युद्ध के मध्य में रानी ने अपनी तलवार से वाडिंगटन पर वार किया । लेकिन उसी समय रानी का घोडा थोडा आगे बढ गया । और वह तलवार सीधे जाके वाडिंगटन के घोडे को जा लगी और घोडे की गर्दन कटकर सीधे जमीन पर जा गिरी। यह सब देखकर अंग्रेज सेनापति डर गया और वह युद्ध से भाग निकला। और विरागना रानी अवन्तिबाई ने युद्ध में हजारो अंग्रेज सेनिको को मौत के घाट उतार दिया।
लेकिन अंग्रेज शासक अपनी हार का बदला लेने के लिये फिर से युद्ध की तैयारी में जुट गया। और कुछ समय बाद में उसने रानी के रामगढ के किले में घेरे बन्दी कर दी। लेकिन इस बार वह एक विशाल सेना लेकर आया था। रानी किसी तरह उसकी सेना से बचकर देवहारगढ की पहाडियो चली गयी।
लेकिन वह रानी को रामगढ में न पाकर उनकी तलाश करता रहा। उसके बाद रानी ने देवहारगढ के पहाडो से ही छापामार युद्ध की प्रणाली अपनाते हुये वाडिंगटन की सेना छिन्न छिन्न कर दी। इसी तरह रानी अंग्रजो के साथ लोहा लेती रही।
लेकिन अंत में रानी को जब लगा की कुछ समय बाद में अंग्रजो से घिर जाउगी। तब उन्होने उनके विश्वास पात्र मित्र उमरराव को कहा की भाई इन दुष्ट अंग्रजो के हाथो मरने से अच्छा है कि में स्वयं ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर दूं।
उमरराव ने कहा बहन पहले मुझे अपना शोर्य दिखाने दिजिये । तब आपको जैसा उचिन लगे वैसा फैसला लेना। इसके बाद उमर राव ने अंग्रजो की सेना को मूली गाजर की तरह काटना प्रारम्भ कर दिया। और अंत में शहीद हो गये। इसके बाद जब रानी को लगा की वह अकेले हो गयी है तो उन्होने स्वयं की तलवार स्वयं के पेट में घुसा दी और बेहोश हो गयी।
कुछ समय बाद जब रानी को होश आया तो वाडिंगटन ने उनको और उनकी वीरता को सलाम किया। इसके बाद इस वीरांगना ने हरीओम का उच्चारण करने के बाद 20 मार्च 1858 को अपने प्राण त्याग दिये ।
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