विवेकानंद के जीवन से जुड़े कुछ खास किस्से :-
स्वामी जी के बारे में भला कौन नही जानता, लेकिन आज आप उनके जीवन से जुडे कुछ जरुरी तथ्यो से यहां परिचित होगे। जिनसे आप अवश्य कोई न कोई सीख अवश्य लेगे।
साहसी
1- स्वामी जी बचपन में पांच छह साल की उम्र में अपने मि़त्र के घर खेलने जाया करते थे। घर के आंगन में एक पैड लगा हुआ था। जिस पर स्वामी जी बार बार लटक लटक कर खेलते थे। एक दिन उनके मित्र के दादा जी को लगा की कही वह गिर ना जाये । दादा जी ने उनसे कहा कि तुम पेड पर मत चढा करो । इस पेड पर भूत रहता है। वह तुम्हे खा जायेगा। दादा जी चले गये। दादा जी के जाने के बाद स्वामी फिर से पैड पर चढ गये। उनके मित्र ने उनसे कहा जल्दी से नीचे उतर आऔ। दादा जी ने क्या कहा था। उन्होने कहा- तुम यह कैसे मान सकते हो कि पैड पर भूत रहता है। हमे किसी की बात पर युंही भरोसा नही करना चााहिये। देखो यहां कोई भूत नही है।
2 लगभग छह वर्ष की उम्र में विवेकानंद अपने दोस्तो के साथ मेले में घुमने गये थे। मेले में सभी दोस्तो ने मेले से कुछ न कुछ लिया। विवेकानंद ने भी मिटटी की बनी भगवान शिव की मूर्ती खरीद ली। तभी एक लडका समूह से बिछड कर रोड पर चला गया। तभी सडक पर बेलगाडी आ गयी। जिससे वह घबरा गया। लोगो को लगा बच्चा बेलगाडी के नीच आ जायेगा। जिस कारण लोग चिल्लाने लगे। चिल्लाने की आवाज सुन विवेकानंद की दृष्टि उस साथी पर गायी।
स्थिति को समझते हुये विवेकानंद ने बिना समय गंवाये मूर्ति को जमीन पर रखकर बालक की और दौडे। व अपने साथी को लगभग घोडे के पैर के करीब से खिचकर वापस ले आये। इस बात में कोई शक की गुजाइस न थी की अगर एक सेकण्ड की भी देरी हो जाती तो बालक की हडिडयां चूर चूर हो जाती। इस छोटे से बालक की बहादूरी की सब ने खूब प्रशंसा की। इस घटना की जानकारी जब विवेकानंद (नरेंद्र) की माँ की मिली को तो उन्होने उसे गोदी में उठा लिया और कहा बेटा हमेशा इसी सभी की मदद करना।
दानी
स्वामी बचपन से दयालु व दानी प्रवृति के थे। जो कोई भी उनसे जो कुछ भी मांगता वह उसे दे देते। इसी कारण स्वामी जी को कमरे में बंद करके रखा जाने लगा। लेकिन उन्होंने अपना पहना हुआ वस्त्र खिडकी से ही दान में दे दिया था।
एक बार सरदी का समय था। और एक सादू उनके घर के दरवाजे पर कुछ खाने को मांग रहा था। स्वामी जी ने साधू को चावल दिये फिर वह पहनने के लिये भी कुछ मांगने लगा। तभी स्वामी जी ने अपने कमर पर बंधी रेशमी सोल साधू को दान कर दी । साधू ने स्वामी जी से आर्शीवाद देते हुये कहा था तुम भविश्य में अवश्य ही संसार का कल्याण करोगे।
संस्कृति प्रेमी
विदेश में यात्रा के समय स्वामी जी के पास केवल उनके भगवा वस्त्रो व पगडी के सीवा कुछ भी नही था। यह सब देखकर वहां के लोगो ने पुछा आपका और समान कहां है।
स्वामी जी ने कहा- केवल यही समान है।
तब कुछ लोग कहने लगे यह कैसी संस्कृति आपके देश की जो शरीर पर कोट या अन्य कोई वस्त्र नही है। तब स्वामी जी ने कहा था कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से अलग है। आपकी संस्कृति का निर्माण आपके वस्त्र व दर्जी करते है। लेकिन हमारी संस्कृकि का निर्माण हमारा व्यक्तित्व चरित्र करता है।
“संस्कृति चरित्र के विकास में है न की वस्त्रो में”।
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शिकागो की एक घटना
स्वामी जी एक अंग्रेज मित्र व कु मूलर के साथ एक मैदान मेें वाक कर रहे थे। तभी अचानक से एक पागल सांड तेजी से इनकी और आने लगा। अंग्रेज लोग तेजी से दौडकर दूसरी और जाकर खडे हो गये। कु मूलर भी जान से दौडी व अंत में हडबडाकर जमीन पर गिर पडी।
ये सब देखकर स्वामी जी उनको सहायता का कोई न पाकर स्वयं ही सांड के सामने खडे हो गये व सोचने लगे कि आखिरी समय आ पंहुचा है। पंरतु वह सांड कुछ दूरी तक बढने पर अचानक से रुक गया। और अचानक ही अपना सिर उठाकर पीछे मुड गया। जब स्वामी जी वहां खडे हुये तो वह हिसाब कर रहे थे कि वह साड उनको कितने दूर फेकेगा। लेकिन वह अचानक से रुक गया। अंग्रेज स्वामी जी को इस तरह छोडकर जाने पर बडे ही लज्जित हुये।
तर्क शील विवेकानंद
स्वामी जी बचपन से किसी भी बात पर बिना तर्क किये विश्वास नही करते। वह कहते किसी भी बात पर यूही भरोसा मत करो जब तक उसे अपने तर्क की कसौटी पर न कस लो।
बचपन में स्वामी जी के घर पर अलग अलग वर्गो के लोग आया करते थे। सभी के लिये अलग अलग हुक्के होते थे। स्वामी जी सोचते कि आखिर इन सब में फर्क क्या है। एक दिन इन्होने सारे हुक्को को पीकर देखा लेकिन कोई अंतर नही पाया। फिर एक दिन सारी बाते अपने पिता से कहकर इनको रखने का मतलब जानने की जिज्ञासा करी।
इनके पिता ने कहा यहां अलग अलग जाति विरादरी के लोग आते है यह उनकी के लिये है।
फिर स्वामी जी के मन में एक और सवाल उठा। कैसे एक जैसे दिखने वाले मनुष्यो में फर्क हो सकता है। और जीवन भर वह प्रत्येक बात पर बिना तर्क किये विश्वास नही करते थे।
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