पित्ताशय में पथरी कैसे होती है
पित्ताशय में पथरी शरीर में पित्त के असंतुलन से पैदा होता है। यह यकृत से संबंधित रोग है। यह यकृत के दाहिने भाग में गोल गॉलब्लैडर में स्थित होता है। इसमें बहुत ही असहनीय पीड़ा होती है। यह गोल ब्लैडर में कफ तथा पित्त का वायु के साथ मिलने से सूखकर छोटे-छोटे कण बनाती है, जिसे पथरी कहते हैं। यह शरीर में पित्त के बढ़ जाने पर भी होती है। अत्यधिक अम्लीय पदार्थ ग्रहण करने पर भी यह समस्या होती है।
पित्ताशय में पथरी के लक्षण
- पित्त की पथरी होने पर खाना ना पचना।
- भोजन खाने की इच्छा ना हो ना।
- काम में जीना न लगना।
- शरीर का गिरा गिरा महसूस होना।
- हल्का बुखार होना।
- सर्दी लगना तथा शरीर का कंपना।
- पानी का ना पचना।
- कुछ भी खाने पर उल्टी आने जैसा महसूस होना।
- नाभि के नीचे हल्का हल्का दर्द महसूस होना।
- बुखार के कारण पसीना होना।
पित्ताशय में पथरी के कारण
पित्ताशय में पथरी के मुख्य कारण निम्न लिखित है।
- दैनिक जीवन में अनियमित दिनचर्या के कारण भी यह समस्या उत्पन्न होती है।
- अत्यधिक चिकनाई वाले पदार्थ खाने से।
- ज्यादा दवाइयों के सेवन से।
- भोजन न पचने के कारण भी यह समस्या होती है
- शरीर में अत्यधिक कब्ज बढ़ जाने के कारण भी यह समस्या होती है।
- अत्यधिक क्षारीय पदार्थ ग्रहण करने से भी यह समस्या होती है।
- भरपेट भोजन करने तथा काम ना करने के कारण भी ऐसा होता है।
आचरण संबंधी नियम
समय पर अपना कार्य पूर्ण करें । विशेषकर आहार समय पर ग्रहण करें। भूख लगने पर ही भोजन करें तथा आवश्यकता अनुसार ही भोजन ग्रहण करें। गर्म पानी का सेवन करें। फ्रिज का पानी ना पिए शरीर में कब्ज न बनने दें। गरिष्ठ भोजन ना करें। सादा सात्विक आहार ही ग्रहण करें। प्रातः जल्दी उठे भोजन के बाद तुरंत ना सोए। टहलने जाए। व्यायाम प्रतिदिन करें। वसायुक्त आहार ग्रहण करें। यदि बुखार हो तो सिर पर गीली पट्टी करें। पानी के साथ नींबू डालकर पिए। यदि दर्द ज्यादा हो तो गर्म पानी पिए। इससे लाभ मिलेगा। दूध मट्ठा फलाहार ग्रहण करें इससे लाभ मिलेगा ।
पित्ताशय में पथरी के लिए शुद्धि क्रिया
शरीर में पित्त बढ़ जाने पर कुंजल क्रिया का अभ्यास करें, इससे रोगी को लाभ मिलेगा। यदि कब्ज अत्यधिक बढ़ गई हो तो लघु शंख प्रक्षालन क्रिया करें। कुंजल हफ्ते में दो बार कर सकते हैं। गुनगुने पानी का एनिमा भी ले सकते हैं।
पित्ताशय में पथरी के लिए आसन
पीड़ा अधिक ना हो तो यथाशक्ति आसन अवश्य करें जैसे पवनमुक्तासन समूह, शलभासन,
भुजंगासन,
पवनमुक्तासन, उत्तानपादासन, मर्कटासन,, मकरासन, इत्यादि का अभ्यास यथाशक्ति करें।
पित्ताशय में पथरी के लिए प्राणायाम
यदि संभव हो तो कोई भी प्राणायाम कर सकते हैं। जैसे कपालभाति, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्छा, उदगीथ, शीतली, शीतकारी, नाड़ी शुद्धि, अनुलोम विलोम इत्यादि कर सकते हैं। साथ ही ध्यान करें ध्यान का अभ्यास करने से मानसिक शांति मिलती है।
पित्ताशय में पथरी के लिए आहार
समय पर आहार ग्रहण करें सात्विक आहार ही ग्रहण करें। मांसाहारी आहार त्याज्य है। भोजन में तरल पदार्थ अधिक मात्रा में ग्रहण करें। अत्यधिक पानी पिए। गरिष्ठ भोजन का त्याग करें। अत्यधिक मैदा युक्त पदार्थ वर्जित है। फल सब्जियां उचित मात्रा में लें। फलों का रस उबली सब्जियां शरीर के लिए लाभदायक है। तले भुने पदार्थों से बचें जैसे पूरी भटूरे समोसे कचौड़ी पकौड़ी इत्यादि शरीर के लिए हानिकारक है।