उत्तराखण्ड के पूर्वी जनपदों में एक बहुप्रचलित प्राचीन दन्तकथा आती है। जिसमें किसी नगर में दो पति-पत्नी निवास करते थे। पति नगर में कार्य करता तथा पत्नी घर की देखभाल करती थी अभी एक-दो वर्ष ही विवाह को हुए थे। पति का नाम ठेकुवा और पत्नी का नाम दमयन्ती था। पत्नी को हमेशा शिकायत रहती कि उसके पति का नाम कुछ अटपता सा है इसलिए वो अपने पति को अपना नाम बदलने के लिए कहती थी। परन्तु पति बाद में देख लेंगे कर टाल देता।
एक दिन छुट्टी का दिन था दोनों ने चाय नाश्ता किया और तभी वही पुरानी बात पत्नी ने छेड़ दी और कहा कि आपका नाम ठेकुआ जचता नहीं लोग मुझे चिड़ाते हैं कि देखो ठेकुआ की पत्नी और कल हमारे बच्चे होंगे तो लोग कहेंगे कि ठेकुवा के बच्चे ये कैसा अच्छा लगता है, ठेकुवा का ये ठेकुवा का वो इस प्रकार उसने जोर दिया और पती को भी लगा कि ये रोज-रोज की बहस हो गयी है क्यों न इसका निवारण किया जाए।
तो उसने पत्नी को पूछा कि आँखिर तुम चाहती क्या हो? इस पर पत्नी ने कहा कि आज छुट्टी है आप बाहर नगर भ्रमण के लिए जाइए और सबसे उनका नाम पूछिये, जो भी नाम आपको ठीक लगे उसे स्वीकार कर लेना। पति उसके हाँ में हाँ मिलाते हुए एक अच्छे नाम के खोज में घर से निकल पड़ा।
घर से निकलते ही वह गली से जा रहा था कि एक महिला झाड़ू लगा रही थी, उसने उस महिला से उसका नाम पूछा महिला ने अपना नाम लक्ष्मी बताया उसने कुछ सोचा और आगे बढ़ गया। आगे चलते ही नगर के चैराहे पर पहुँचा तो देखता है कि एक व्यक्ति भीख माँग रहा है, वह उसके पास भी गया और भीख माँगने वाले का नाम पूछा तो उसने धनपती बताया, फिर कुछ सोचते हुए वह आगे बढ़ गया।
आगे चलकर देखता है कि एक शव यात्रा वहाँ से ले जाई जा रही है, पूछने पर पता चला कि जो व्यक्ति मर चुका है उसका नाम अमर सिंह है। व्यक्ति संकोच में पड़ गया और फिर उसने किसी से कोइ नाम न पूछा और सीधे घर आ गया।
जब व्यक्ति घर आया तो पत्नी ने तुरन्त पूछा कि आया कोइ नाम जो आपको ठीक लगता हो मैं भी जानना चाहती हूँ । इस बात पर पती ने अपने साथ हुई घटना व्यक्त की और कहा कि नाम ठीक है।
लक्ष्मी झाड़े झाड़ को धनपति माँगे भीख।
अमर सिंह जैसे मर गये ठेकुवा नाम है ठीक।।
पत्नी को सारी बात समझ में आ गई और वो जानती थी कि इस बारे में अब बात करके कुछ फायदा होने वाला नहीं है। क्योंकि इस प्रकार के उदाहरण उसके समक्ष प्रस्तुत हो गये और फिर कभी भी इस बात की चर्चा उस परिवार में न हुई। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी का नाम क्या है उससे फर्क नहीं पड़ता अपितु फर्क पड़ता है कि उसके कर्म, भाव व सामाजिक स्थिति और शिक्षा और व्यवहार कैसा है।
दोस्तों हम जानते हैं कि जिस भी परिस्थिति में हमारा नामकरण हुआ हो या बिना किसी प्रयोजन के भी हमारा नाम रखा गया हो परन्तु एक न एक दिन उसका इस शरीर से सम्बन्ध टूटना ही है यह निश्चित है। परन्तु किसी नाम के मानव सभ्यता का मजाक बनाना, किसी को चिड़ाना अच्छी बात नहीं है क्योंकि मनुष्य का नाम उसके कर्मो के आधीन होता है जिस प्रकार का कर्म करेंगे उसी से आपके नाम की महिमा और ख्याति संभव है। इसलिए किसी के नाम का मजाक बनाना ठीक नहीं।
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