श्रीमद भगवत गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण योग सिद्धि के लक्षणों के बारे में कहते हैं कि मनुष्य को योग की सिद्धि होने पर उसकी आत्मा शुद्ध हो जाती है उसका मन शुद्ध हो जाता है वह अपने आप को हल्का महसूस करता है।
अपनी आत्मा को वह जाने लेता है अर्थात उससे सत्य का व्यस्त विज्ञान हो जाता है और वह तृष्णा रहित हो जाता है। वह पूर्ण जीतेंद्र हो जाता है उसने सब कुछ पा लिया इसका उससे भान हो जाता है उसके जीवन में कुछ भी शेष नहीं होता वह संतोषमय प्राणी हो जाता है।
वह अपने स्वरुप को पहचाने लगता है ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या है इससे परम सत्य को जानने लगता है। सभी भूतों में वह आत्म वत व्यवहार करता है उसके व्यवहार में शालीनता सभ्यता और प्रेम का भाव फूटने लगता है । वह सभी को एक भाव से देखता है, वह सभी को एक ही नजर से देखता है उसके लिए जात पात भेदभाव इन सभी विषयों के बारे में सोचना निरर्थक होता है ।
सभी प्राणियों के लिए वह कल्याणकारी कर्मों को करता है उसके लिए ना कोई अपना ना कोई पराया ऐसा कोई भाव नहीं है वह सबको समान समझता है और अपना ही परिवार समझता है ।
वह कर्म करते हुए उन कर्मों में लिप्त नहीं होता वह अपने आप को किसी भी चीज का आदि नहीं बनाता वह सांसारिक मोह माया को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता सबको सीमित भाव से देखता है ।