एक अंधी बूढ़ी माता थी। रोज गणेश जी की पूजा करती थी। उनके लिए फूल फल लाना, उन पर माला ढोलक लड्डू और भी कई व्यंजन बनाती थी। उस बूढ़ी माता ने गणेश जी को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर लिया था।
भगवान गणेश जी ने प्रसन्न होकर बूढ़ी माता से पूछा की है बुढ़िया माई बताओ तुम्हें क्या चाहिए। तब बुढ़िया ने कहा हे प्रभु मुझे तो कुछ मांगना ही नहीं आता।
भगवान गणेश जी बोले अपने बेटे बहु से पूछ लो या कोई और हो तो उससे पूछ कर देख लो। बहु बोली मेरे लिए पुत्र मांग लो, बुढ़ापे में पोते का सुख देख लो। बेटे ने पूछा तो बोला धन मांग लो धन हो जाएगा, तो सब कुछ हो जाएगा।
पड़ोसन से पूछा तो बोली बेटे बहू किसके हैं । तू तो अपना स्वस्थ मांग ले नहीं तो बुढ़ापे में दुःख पाएगी। अब बूढ़ी माता चक्कर में पड़ गई।
सोचते सोचते हो गई सुबह, उठी नहा धोकर पूजन किया। श्री गणेश जी आए और बोले माता पूछ लिया। बुढ़िया बोली हाँ , हर किसी को पूछ लिया ।
आप मुझे यह वरदान दो कि मैं अपने पोते को सोने के कटोरे में दूध पीते देखूं। विनायक जी बोले बूढ़ी माता तू तो भोली दिखती है और मांगने के समय सब कुछ मांग लिया।
अच्छा ऐसा ही होगा भगवान गणेश ऐसा कह कर चले गए। धीरे-धीरे सारी बातें होने लगी घर में बहुत पैसा होने लगा। खूब धन दौलत हुई। बहू का लड़का भी हो गया और बुढ़िया स्वस्थ हो गई। हे विनायक जी महाराज बुढ़िया की तरह सब पर दया करना।