आप पढ़ लिख गए। 10वी , 12वी , स्नातक कर लिया, कोई डॉक्टर बन गए , कोई इंजीनियर बन गया, कोई टीचर बन गया , कोई किसान बन गया। अपनी अपनी रुचि के अनुरूप सभी कुछ ना कुछ बन गए।
आप कुछ जान लो सिख लो वह सब विद्या है।
अनेक प्राकर के कौशल का ज्ञान अर्जित कर सकते है लेकिन क्या यही वास्तविक विद्या है?
लेकिन वास्तव में असल विद्या वह है जिसके जानने के बाद कुछ भी जानना बाकी ना रहे और मुक्ति हो जाये।
इसलिए ही शास्त्रों में लिखा गया है कि ‛सा विद्या सा विमुक्तये’
यदि आपने शब्दब्रह्म (वेद) को जान लिया और एक परब्रह्म (परमात्मतत्व) को नही जाना तो कुछ भी ना जाना।
अतः परमात्मतत्व को जानना ही मुख्य और सर्वश्रेष्ठ विद्या है। और इसे जानने पर ही जीवन सफल हो सकता है। यही वास्तविक सफलता भी है।
जिससे जीवका का उपार्जन हो, काम मिले। धन उपार्जन हो यह भी विद्या है।
लेकिन यह विद्या परमात्म प्राप्ति में मददगार नही होती।
बल्कि कही कही उस विद्या का अभिमान होंने से वह विद्या उस परमात्मप्राप्ति में बाधक हो जाती है।
विद्या पर अभिमान और अहंकार करने वालो को यदि कोई ब्रह्मनिष्ठ साधु मिल भी जाये तो वह तर्क करके उनकी बात काट देगा और उनको चुप करा देगा।
जिस कारण वह असल ज्ञान के लाभ से वंचित हो जाएगा।
इसलिए कहा गया है चाहे यक्ति कितना पढ़ा लिखा और कही विद्या जानने वाला हो। वेद और शास्त्र क्यो ना पढ़ा हो । यदि उसका मन राम और कृष्ण में नही लगता। उंस ब्रह्म में मन नही लगता है तो क्या लाभ।