षटकर्म में शुद्धीकरण की तीसरी प्रक्रिया में नेती क्रिया को रखा गया है। इस क्रिया का मुख्य उद्देश्य शीर्ष प्रदेश के क्षेत्र की सफाई करना है। नेति क्रिया आंतरिक नाड़ियों को संवेदनशील बनाने में सहायता करती है। ऐसी मान्यता है कि दृष्टि दोष से संबंधित नाड़ियों का भी नेति क्रिया के माध्यम से शोधन हो जाता है। और नासिका का भीतरी क्षेत्र भी नेति क्रिया से शुद्ध होता है।
वैसे नेति क्रिया में कहीं अभ्यासों वर्णन किया गया है, लेकिन मुख्य दो ही है।
१ जल नेति
पहले अभ्यास में जल का प्रयोग किया जाता है, यह बहुत प्रचलित अभ्यास है। इसमें कुनकुने नमकीन जल का प्रयोग किया जाता है । जिससे नासिका मार्ग की सफाई की जाती है । और इस मार्ग को और अधिक साफ़ सुथरा और बनाया जाता है । जिससे निसिका मार्ग के अवरोध दूर हो जाते है । और कही बीमारियों से रहात मिलती है । इसके लाभ हानि विधि आदि विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करे जल नेति .
२ सूत्र नेति (रबर नेति)
नेति कर्म के दूसरे अभ्यास में सूत्र नेति आती है । इसमें एक धागे से बनी रस्सी को नासिका छिद्रों से पार करते हैं। जिससे नासिका मार्ग और अधिक खुला हो जाता है और कभी कभी साइनस की हड्डी भी बढ़ जाती है इसकी रगड से वह भी ठीक हो जाती है । लेकिन वर्तमान समय में इसके बदले में रबर का प्रयोग होने लगा है । इसके लाभ, हानि, विधि ,आदि विस्तार से पढ़ने के लिए क्लिक करे सूत्र नेति
इसके अतिरिक्त नेती क्रिया में दूध घी तेल एवं मूत्र का भी प्रयोग किया जाता है।