विस्तार में अहोई अष्टमी व्रत कथा
एक साहूकार के सात बेटे थे सातों बेटे की शादी हो चुकी थी 1 दिन उनकी बहू है अपनी ननद के साथ चौके के लिए मिट्टी लेने गई ।मिट्टी खोदते समय उनकी ननद से श्याउ के बच्चे मर गए।
श्याउ ने कहा कि मैं तुझे श्राप दूंगी तेरी कोख बांध दूंगी तब वह बोले कि भाभियों तुम में से एक मेरे बदले का यह श्राप ले लो।
तब 6 भाभियों ने तो ना कर दी सबसे छोटी ना सोचा कि यह अपनी छोटी ननंद है इसी को बंध जाएगी तो इसकी सास को दुख होगा।
मेरे तो 6 जेठाणिया है इनके बाल बच्चे होंगे ही। ऐसा सोचकर उसने अपनी कोख बंदवाली। दिन बीते वर्ष बीत गए उसके बालक हो और वह भी होली के दिन मरे। इसलिए वह व्रत भी नहीं कर सके उसका दिन रात रोना चालू रहे।
उसने बड़े-बड़े पंडित बुलाये और पूछा कि मेरा यह श्राप कैसे छूटेगा। तब पंडित ने बताया कि तू ससुरी गऊ की सेवा किया कर ।
श्याउ उसकी बहन है सुररी जब वह खुश होगी तो वह अपनी बहन से कह कर तुम्हारी कोख छुड़वा देगी। पंडितों की बात मानकर वह दूसरे दिन से ही सुररी गाय की सेवा करने लगी।
बहुत दिन बीत गए सुररी गाय ने पूछा कि तुझे मेरी सेवा करते हुए बहुत दिन हो गए तो क्या चाहती है।
सरकार के बेटे की बहू ने कहा कि श्याउ से मेरी कोख छुड़वा दो सुररी बोली कि कल मुंह अंधेरे में आना।
दूसरे दिन वह आई तो सुररी उसे अपने साथ लेकर उजाड़ बावनी में आई वहां श्याउ ने कहा आ बहन बहुत दिनों में आई है। यह तुम्हारे साथ कौन है वह बोली यह मेरी सेवा करती है।
तब श्याउ ने कहा कि मुझे मेरे बच्चों की रखवाली के लिए भी चाहिए। सुररी बोली इसे ही रख ले। साहूकार के बेटे की बहू है। उसकी सेवा करने लगी।
1 दिन श्याउ बोली तू कौन है और इतनी उदास क्यों रहती है। साहूकार के बेटे की बहू की आंखों में आंसू आ गए और बोली कोई बात नहीं तब श्याउ बोलिए अभी बता मैं तेरे संकट दूर करूंगी साहूकार के बेटे की बहू ने कहा वचन दे।
श्याउ ने वचन दिया तो उसने सारी बात कह दी श्याउ ने कहा तूने मुझे ठग दिया। पर कोई बात नहीं सेवा बंदगी फिर सब कुछ हो सकता है।
आज के बाद तेरी संतान नहीं मरेगी तथा पिछले साथ तो बेटे भी अपने बहुओं के साथ घर आ जाएंगे यह आशीर्वाद तथा बहुत सा धन देकर विदा किया। घर आई तो अपने सातों बेटे और सातों बहुओं को देखकर बहुत खुश हुई।
उसने अपने साथ बेटों के साथ अहोई अष्टमी बनाई सात उजमान किए तथा सात कढ़ाई की रात को जेठानी या आपस में कहने लगी जल्दी धोक कर लो छोटी अपने बच्चों की याद में रोने वाली होगी।
थोड़ी देर बाद उन्होंने अपने बच्चों से कहा कि अपनी चाची के घर जाकर देखो कि वह अभी तक रोई क्यों नहीं बच्चों ने देखा चाची तो कुछ मांग रही है
और उजमन हो रहा है यह सुनते ही जेठानी या दौड़ी दौड़ी आई और कहने लगी तूने कोख कैसे छुड़वाई।
वह बोली स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी। माता ने जिस प्रकार साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारे भी पोलियो कहने वाले तथा सुनने वाले की तथा सब परिवार वालों की कोख खोलें बोलो माता जी की जय।