Spiritual Health Hindi: – एक बार श्रीमद्भागवद् कथा का प्रवचन चल रहा था व्यास जी अपने व्यासपीठ से लोगों को सकारात्मक मानसिक विचारों पर कुछ बता रहे थे और उन्होंने उस संदर्भ में एक कहानी सुनाई जो में आपको बताने जा रहा हूं।
एक बार की बात है दो सहपाठी किसी गुरुकुल में साथ रहते थे। वे दोनों का प्रेम कृष्ण-सुदामा की तरह ही पवित्र था । दोनों साथ में विद्याध्ययन करते तथा आश्रम में निवास कर गुरु के आदेशों का पालन करते थे। एक बार गुरुजी ने शिवरात्रि के दिन दोनों सहपाठियों को किसी दूसरे नगर में जाने के लिए कहा। जो कि एक प्राचीन सिद्धपीठ था, और वहां पर भगवान शिव का अभिषेक, पूजन कर प्रसाद ग्रहण करते हुए आश्रम वासियों के लिए शुभाशील लेकर लौटने का आदेश दिया।
दोनों सहपाठी गुरु की आज्ञा लेकर निकल पड़े। रास्ता लम्बा और जंगली जानवरों से भरा पड़ा रहता था। परन्तु वे पहली बार तो जा नहीं रहे थे। अक्सर गुरुजी के आदेश हुआ करते तथा किसी और कार्य हेतु भी उन्हीं दोनों का चयन वस्तुतः किया जाता।
कुछ दूर जाने पर आकाश में बादल गरजने लगे और चारों ओर अंधेरा छाने लगा। देखते ही देखते बादलों ने सम्पूर्ण आकाश मण्डल को पूरा ढक लिया और यह निश्चित सा लगने लगा कि अब तो जोरों की वर्षा होने वाली है। इस पर मित्र ने कहा कि चलो किसी की शरण ली जाय क्योंकि जिस प्रकार का माहौल तैयार हो रहा है । हम कहीं तूफान की चपेट में न आ जायें। परन्तु पहला सहपाठी ने कहा कि चाहे कुछ भी हो जाय मैं तो मंदिर पर जाकर ही रुकुंगा उससे पहले नहीं।
थोड़ी देर पश्चात जोर-जोर से बादल गरजने लगे और मूसलाधार बारिश होने लगी अब तो दूसरे ने कहा कि हमें थोड़ा विश्राम तो लेना ही चाहिए। थोड़ी देर रुकने के बाद आगे बढ़ जायेंगे। चलो वहां पर एक वैश्या का घर है थोड़ी देर वहीं पर रुक जायेंगे और जैसे ही बारिश कम होगी तो आगे बढ़ लेंगे। इस पर पहला उग्र हो गया और कहने लगा बिल्कुल नहीं मैं तो सीधे मन्दिर पहुंचकर ही रुकुंगा और वैसे भी तुम वैश्या के घर विश्राम करोगे कदापि नहीं मैं ये नहीं कर सकता तुम्हें जाना है तो जाओ।
दूसरा वैश्या के घर चला गया अरे इसमें क्या है इसांन तो इसांन है चाहे वह कोई भी हो फिर मुझे कैसा घर-ग्रहस्थी थोड़े ही बसानी है । थोड़े देर रुकुंगा और फिर चल पड़ुंगा। ऐसा सोचकर वह वैश्या के यहां पहुंचा तो वैश्या ने देखा कि गौर शरीर ब्रह्मचारी उसके घर रुकने के लिये आया है। उसने सादर स्वागत किया तथा बैठने के लिय उचित प्रबन्ध कराया।
शाम हो गई पर बारिश न रुकी उधर पहला ब्रह्मचारी वहां मंदिर पहुंच चुका था और इधर दूसरा बारिश के रुकने की प्रतिक्षा कर रहा था। समय बीत रहा था। अब दोनों की मनःस्थिति देखिये पहला जो मंदिर पहुंच चुका है वह दूसरे वाले के बारे में सोच रहा है कि वह तो वैश्या के यहां रुका है। क्या वहां पर खाना खाया होगा या नहीं।
कहीं वैश्या ने उसे अपने जाल में न घेर लिया हो। कहीं उसने उससे विवाह तो न कर लिया आदि प्रश्नों के उबार लगाकर सिर्फ वैश्या और दूसरे सहपाठी के बारे में सोचता। और दूसरा जो वैश्या के यहां था वह मंदिर के बारे में सोच रहा था कि भगवान की पूजा प्रारंभ हो गई होगी या नहीं । उनका श्रृंगार किस प्रकार किया होगा, सम्पूर्ण मंदिर को देखता, मन ही मन उनका चिन्तन करने लगता।
इस प्रकार जो व्यक्ति मंदिर में है वह वैश्या और अपने मित्र का ध्यान कर रहा है और जो वैश्या के घर पर है वह भगवान का चिन्तन कर रहा है। इससे यह सिद्ध होता है कि हम किसी स्थान पर होते हुए भी वहां पर पूर्ण रूप से उपस्थित नहीं रहते। अध्यात्म मार्ग तो सिर्फ मानसिक मांसपेशियों के स्वस्थ होने मात्र से सार्थक नहीं होता।
ये सार्थक तब होता है जब मनःस्थिति वास्तविक रूप से सकारात्मक विचारों के साथ होती है। इसलिए जिस किसी प्रकार की पूजा, वंदना, अर्चना आदि हम करते हैं उन्हें हमेशा सकारात्मक दिशा में ही करें तभी आध्यात्मिक स्वास्थ्य की परिकल्पना को सिद्ध किया जा सकता है।
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